हम तो उनकी हर इक बात से इत्तेफाक रखते है,
संग अपने, अपनी बेगुनाही की ख़ाक रखते है।
हर लम्हा मुमकिन था, बेशर्मी की हद लांघना,
किंतु जहन में ये था कि हम इक नाक रखते है।
हमको नहीं आता कैसे, दर्द छुपाते हैं पलकों में,
किंतु नजरों में अपनी, बला–ए–ताक रखते है।
तमन्ना इतनी थी, हमें सच्चा प्यार मिल जाता,
कोई हरगिज ये न सोचे, इरादा नापाक रखते है।
जी करे जब 'परचेत', लिख दे कोई नज्म, गजल,
दिल हमारा श्याम-पट्ट है, जेब में चाक रखते है।
pcg saheb,
ReplyDeletekamaal ki ghazal
gustaki maaf karen. aisa ho to kaisa ho
फ़ेंक दो निकाल गर दिल में है कोई बुरा ख़याल आपके !
जख्म-ए-जिगर में हम कोई nahi इरादा नापाक रखते है !!
Sukriya prem ji, aur sach batau to main bhee soch rahaa tha ki kyaa missing hai.
ReplyDeleteThank you very much for your so good suggestion. I have rectified the mistake.
Wah....
ReplyDeleteyakinan kabil-e-daad
ReplyDeletedil syam-patt hai or jeb mein chaak rakhte hai......
kya khayal hai ,,sundar ati sundar