Tuesday, May 19, 2009

निट्ठले बैठे थे जो...

सुना है,  बेनमाजी भी अब नमाजी बन गए है,
कलतक निट्ठले थे जो, कामकाजी बन गए है।
अदाई की रस्म खुद को तो निभानी आती नहीं,
और जनाव हैं कि शहरभर के काजी बन गए है।

जब से बने हैं, यही बताते फिर रहे लोगो को
कि ख़ुदा नाफरमान की हिमायत नहीं करता।
खुद फरमान बरदारी की बात आई जब तो,
मस्साल्लाह,  जनाब  दगाबाजी बन गए है।


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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।