Monday, May 4, 2009

खिड़की !

दो हफ्तों से भारत और पाक के मध्य चल रहा घमासान युद्घ, अब निर्णायक मोड़ पर पहुँच चुका था ! फ्रंट पर मौजूद अधिकांश पाकिस्तानी सैनिक या तो मारे गए थे, या फिर एक-एक कर आत्मसमर्पण कर रहे थे ! उत्तर-पश्चमी सीमा पर तैनात भारतीय सेना की एक टुकडी ने पाकिस्तानी सैनिको के एक बंकर को घेर लिया था ! जब यह खबर फैली कि पूर्वी सीमा पर पाकिस्तान के लगभग सभी सैनिक आत्मसमर्पण कर चुके, तो वहा, उस बंकर में मौजूद पाकिस्तानी सैनिक भी हथियार छोड़कर, हाथ उठा आत्मसमर्पण के लिए आगे बढे !

मेजर शर्मा अपनी टुकडी का नेतृत्व करते हुए, पाकिस्तानी सैनिको के ऊपर धीरे-धीरे शिकंजा कस रहे थे, उनकी उस टुकडी में मौजूद दो जिगरी दोस्त, नायब सूबेदार सुरेन्द्र सिंह और हवलदार मोहन सिंह भी थे! मेजर शर्मा ने दोनों को पाक सैनिको के उस बंकर की उल्टी दिशा से जाकर, उसे घेरने के निर्देश दिए ! कवर फायरिंग का सहारा लेते हुए दोनों रेंगते हुए पाकिस्तानी बंकर के जब एकदम समीप पहुचे, तो तब तक पाक सैनिक हाथ खड़े कर आत्समर्पण के लिए आगे बढ़ चुके थे! अतः यह देख दोनों ने खुद को रिलैक्स महसूस किया और सीधे खड़े होकर पीछे से उन पर बंदूके तान, समर्पण वाले बिंदु की तरफ बढ़ने लगे कि तभी पीछे से एक और बंकर में छिपे बैठे पाकिस्तानी सैनिको ने फायरिंग खोल दी ! अप्रत्याशित इस हमले के लिए दोनों तैयार नहीं थे ! अतः सुरेन्द्र को दो गोलिया लगी और वह पहाडी ढलान पर लुडकता चला गया ! मोहन उसे बचाने के लिए उसके पीछे फिसलता हुआ चला गया! मगर इस बचाने के चक्कर में उसकी भी एक टांग बुरी तरह जख्मी हो गयी थी !

सेना की टुकडी ने दोनों को रेडक्रॉस की मदद से पहले आर्मी बेस अस्पताल पहुंचाया, और फिर उन्हें दिल्ली के आर्मी मेडिकल रिसर्च सेंटर में रिफर कर दिया गया था! सुरेन्द्र तो बुरी तरह से जख्मी था और कई दिनों तक जीवन म्रत्यु से संघर्ष करता रहा था, गोली लगने और फिर नुकीले पत्थरो पर गिरने से उसकी रीड की तथा अन्य हड्डिया बिलकुल टूट चुकी थी! वही दूसरी ओर मोहन की हालाकि एक पैर की हड्डी टूटी थी, किन्तु उसे कई दिनों के इस युद्घ की वजह से एक अजीब तरह की अस्थमा जैसी बीमारी ने भी घेर लिया था ! दोनों को रिसर्च सेंटर के एक कमरे में ही शिफ्ट कर दिया गया, जिसमे दो बेड़ लगे थे! मोहन का बेड़ खिड़की के पास था, जबकि सुरेन्द्र का दूसरे कोने पर, जहां कोई खिड़की नहीं थी ! सुरेन्द्र अन्दर ही अन्दर एकदम टूट चूका था, क्योंकि वह अब खुद उठकर बैठ नहीं सकता था! मोहन उसे दिलाशा देता रहता कि तू देखना, जल्दी एकदम ठीक हो जाएगा! मोहन का बेड़ चूँकि उस खिड़की के पास था अतः वह बिस्तर पर बैठकर, खिड़की से बाहर झाँककर, बाहर के ख़ूबसूरत नजारों का जिक्र सुरेन्द्र को करता रहता, ताकि उसका मन बहला रहे!

युद्घ ख़त्म हो चूका था, देश में जीत का जश्न था, और अब छब्बीस जनवरी भी आ गयी थी! सुरेन्द्र उदास मन से मोहन से कहता कि अगर अचानक यह युद्घ सिर पर ना आता, तो इस बार वह भी गणतंत्र परेड की टुकडी में परेड के लिए चुना गया था, और इस वक्त राजपथ पर होता ! मोहन उसे फिर दिलाशा देता और कहता कि देख इस हॉस्पिटल के ठीक सामने परेड की टुकडी बैंड के साथ कदमताल करते हुए जा रही है ! क्या तू बैंड की आवाज सुन पा रहा है ? सुरेन्द्र लेटे-लेटे अपनी काल्पनिक शक्ति के आधार पर परेड की दिमाग में छवि बनाता और कहता कि वैसे तो मुझे बैंड की आवाज नहीं सुनाई दे रही है, किन्तु मैं महसूस कर पा रहा हूँ कि परेड कैसे आगे बढ़ रही होगी !इस बार तो सैनिको में भी जीत की वजह से दोगुना उत्साह होगा !मोहन उसे दिनभर खिड़की से बाहर के सारे रंगीन नजारों की आँखों देखी सुनाता रहता ! सुरेन्द्र को कभी-कभार इस बात की ईर्ष्या भी होती, कि मोहन का बेड़ खिड़की पर है और वह बाहर का खुबसूरत नजारा देख पाता है, जबकि वह इस तरह एक कोने में है !

एक दिन रात को अचानक मोहन को तेज खांसी आयी और उसकी सांस अटक गयी ! वह इस स्थिति में भी नहीं रहा कि बेल दबाकर नर्स को बुला सके ! दूसरे कोने पर सुरेन्द्र भी यह सब देख रहा था, किन्तु वह तो हिलडुल भी नहीं सकता था कि वही कुछ मदद कर पाता ! देर रात जब डाक्टर राउंड पर आया, तो तब तक मोहन के प्राणपखेरू उड़ चुके थे ! शव को शिफ्ट करने के बाद, जब अगले दिन नर्स कमरे में आयी तो हालांकि सुरेन्द्र, मोहन की म्रत्यु पर दुखी था, किन्तु मोहन का बेड़ जो खिड़की पर था, वह खाली पडा था, अतः सुरेन्द्र ने झट से नर्स को उसका बेड़ मोहन वाले बेड़ पर शिफ्ट करते का आग्रह किया ! नर्स ने उसका बेड़ खिड़की पर शिफ्ट कर दिया ! वह मन ही मन खुस था! उसने किसी तरह कराहते हुए, छटपटाते हुए, कोहनियों के सहारे अपना शरीर खिड़की के बाहर का नजारा देखने के लिए ऊपर उठाया, तो वह यह देख स्तब्ध रह गया कि बाहर तो कुछ भी नहीं दिखाई देता था क्योकि खिड़की के एकदम आगे तो दूसरी बिल्डिंग की छत थी! तो क्या मोहन अपना दर्द भुलाकर , सिर्फ़ उसका मन बहलाने के लिए दिनभर उसे बाहर के खुशनुमा खयाली नजारे बस यूँ ही .....,सुरेन्द्र का मन भर आया था !!!

नोट: कहानी का थीम मैंने एक अंगरेजी कहानी से लिया है !

3 comments:

  1. बहुत ही अच्छी रचना....सही प्रेरन्ना देती है ये...देश प्रेम भाव जगती है...धन्यवाद..

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  2. देश प्रेम से भरी और कुछ सोचती सी रचना ...

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  3. शुक्रिया, रजनीश जी एवं अनिल जी !

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।