Tuesday, May 5, 2009

कलयुगी गुरु-शिष्य संवाद

हे गुरुजी, मुझ दास की,
विनय बस इतनी सुन लीजिये’
बात बडी गम्भीर है,
कृपया कान इधर कीजिये !

शाम को पढू,सुबह को चौपट,
याददास्त कमजोर क्यो?
आजीविका की लाईन मे ,
प्रतियोगिता का शोर क्यो ?

यह मुझे भी मालूम है गुरु,
कि  पृथ्वी सारी गोल है,
गोल है खोपडी मगर पास-लिस्ट से
अपना नम्बर क्यो गोल है?

गुरुजी ने कुर्सी खिसकाई,
खडे हुए, कान ऎठकर कहा, बेटा !
जवानी भर मस्ती मारी,
फिल्म देखी, आराम से रहा लेटा !

बिन तेरे फिल्म न देखने से,
मल्लिका शेरावत ,पिट तो न जाती,
अब अपना नम्बर गोल बताते हुए,
तुझे शर्म नही आती ?

अरे शर्म तो हमे आती है,
क्योंकि हम है तेरे गुरु,
अब पढाई के ख्वाब छोड,
कोई अवैध धन्धा कर शुरू !

बाहर दिखावे को देशी वस्तुवें,
अन्दर तस्करी का माल रखना,
जरुरत पर कभी-कभार अपने,
इस गरीब गुरु का भी ख्याल रखना !!

1 comment:

  1. आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
    चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है

    गार्गी
    www.abhivyakti.tk

    ReplyDelete

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...