नाम पाक, मंसूबे नापाक,
लत संत्रास स्वाद की,
सब झूठे,मक्कार, स्तुति करूँ क्या
किसी एक-आद की !
पिद्दीभर एबटाबाद तो अपना
इनसे सम्भाला न गया,
और कंगले, बात करते फिरते थे
हमारे अहमदाबाद की !!
बीज जैसा, पौध वैसी,
उसपर खुराक द्वेष-खाद की,
उसपर खुराक द्वेष-खाद की,
छीनकर दुनिया का अमन-चैन,
सुख-शांति बर्बाद की !
कांटे खुद बोये,दोष हमें दिया,
अरे कायरों ! हम तुमसा
दाऊद-ओसामा नहीं पालते,
ये भूमि है गांधी, बोष,
राजगुरु, भगतसिंह, आजाद की !!