हमने तो ऐ खुदा,खुद अहाते आफतों के लांघे थे,
क्यों हमारे आल्हाद सारे, तुमने सूली पे टाँगे थे।
ज़न्नत पाने की ख्वाइश, हमने पाली ही कब थी,
इस दोज़ख में ही सिर्फ दो पल शुकून के मांगे थे।
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डेमोक्रेसी रह गई, अब सिर्फ यहाँ पर नाम की,
बात करता नहीं कहीं कोई, इंसान के काम की।
नेता चल रहे है लेकर तुष्ठिकरण की वैसाखियाँ,
कोई हिंदुत्व की पकडे हुए है, कोई इस्लाम की।
और अगर देश हित की सोचते हो तो यही कहूंगा कि
गूंगी, हया-विहीन न कोई मन-मोहनी हो,
कुटिल-सारथियों की अब कोई दरकार न हो,
लुंठक-बटमारों की यहाँ कोई सरकार न हो !
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx जन जड़-चेतन में फिर से
नव-चेतना अलख जगानी होगी,
संघवद्ध होकर शठ-भंजन को,
सबको आवाज उठानी होगी।
आचार, ईमान, शरम बेचता,
सत्ता के खातिर होकर अंधा,
नेता बन फल-फूल रहा,
कुटिलों का प्रच्छन्न गोरख धंधा,
डैड - टैडवाद के विरुद्ध सभी को,
ठोस मुहीम चलानी होगी,
मौजूदा पद्धति में य़कीनन,
मुकम्मल तबदीली लानी होगी।
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बड़े ही अजीब-ओ-गरीब,ये जिन्दगी के फलसफे हैं,
इन्हें समझ पाने की चाह में, हम मीलों तक नपे है।
उम्र गुजरी,सिर्फ किस्मत बुलंद करने की होड़ में ,
एक अकेली जान लेकर न जाने कहाँ-कहाँ खपे है।
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जबकि हमें भी ये मालूम था
कि यहाँ वक्त
किसी के लिए भी नहीं ठहरता,
जूनून की हद तो देखिये
कि हम फिर भी
हर गुजरते हुए लम्हे पर
मुसल्सल ऐतबार करते रहे।
कि यहाँ वक्त
किसी के लिए भी नहीं ठहरता,
जूनून की हद तो देखिये
कि हम फिर भी
हर गुजरते हुए लम्हे पर
मुसल्सल ऐतबार करते रहे।