Monday, May 13, 2013

विचलित मन !


हर घर से होकर गुजरती नियति की गली है,   
न हीं मुकद्दर के आगे,यहां किसी की चली है,  
नीरस लम्हों का सफ़र,किंतु सकूं के दो पल, 
जो हंसकर गुजार दे , वही जिन्दगी भली है। 

पिछले तकरीबन एक माह से जिन्दगी की रेल, बस यूं समझिये कि पटरी से उतरी हुई है। पहले कम उम्र में एक परिजन की असामयिक मृत्यु से अस्त-व्यस्त था , और अब अपना प्रिय श्वान जोकि पिछले १3 वर्षों से घर में, घर के एक सदस्य की भांति था, पिछले ४-५ दिनों से अन्न-जल त्यागकर इस बेदर्द जहां से प्रस्थान की तैयारी में है। खैर, यही दुनिया का दस्तूर है, सोचकर  विचलित मन ने बहलने की कोशिश में कुछ टूटा-फूटा काव्य समेटा है, प्रस्तुत कर रहा हूँ  ;        



वो क्या डरेंगे भला, कहीं बाहर सफ़र में,
जो कफ़न बांधे फिरतें हो, हर वक्त सर में।

निरर्थक है उनसे स्नेह का ध्येय रखना,
द्वेष, नफरत समाई हो जिनकी नजर में।

सेज फूलों की पाने की चाह उनसे कैसी,
शूल बोते जो अपने ही गृह  की डगर में।

खैरात में वो किसे क्या कोई पतवार देंगे,
कश्ती जिनकी फंसी हो खुद ही भंवर में।

सरल भी बहक जाए,है कुटिल खेल ऐसा,
सच भी रख दें उलझाके अगर-मगर में।

खुदा के बन्दे को जब यकीं नहीं खुदा पर,
नजर क्या आयेगा उसे दुआ के असर में।

संगीनों के पहरे में रहकर हैं बाजू दिखाते,
नामर्द क्या जाने,क्या चल रहा है नगर में।

डरी,सहमी रहें गलियाँ भी भरी दोपहरी में,
वो अकेले चलकर तो देखें ज़रा रहगुजर में,   

12 comments:

  1. मैंने तो इसी डर से कभी श्वान को नहीं पाला, हालांकि इच्छा बहुत थी। बहुत अफसोस हुआ।

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  2. श्वान का अलग होना बहुत पीडा दायक होता हैम हम इन स्थितियों से गुजर चुके हैं, आपकी पीडा समझ आती है, पर संसार चक्र तो चलता ही रहेगा.

    रामराम.

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  3. ग़म के माहौल में मर्मस्पर्शी रचना।

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  4. अपनों का जाना विदीर्ण कर जाता है, साथ रहने वाला तो अपना ही हो जाता है।

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  5. तेरी पीड़ा मा द्वी आंसू मेरा भी पोड़ी जाला पिड़ा नी लुकैई। गहरा दुख हुआ जान कर। सोच ही रहा था कि गोदियाल साहब बहुत दिनों से ब्‍लॉगविहीन हैं तो कहां है!

    सरल भी बहक जाए,है कुटिल खेल ऐसा,
    सच भी रख दें उलझाके अगर-मगर में।................बहुत ही गहरा सत्‍य समेटा है आपने अपनी गजल में। आपकी विनम्रता ही है जो गहरे भावों से युक्‍त काव्‍य को भी आप टूटा-फूटा कहते हैं। इस हेतु बधाई आपको। शिव का ध्‍यान करें शांति प्राप्‍त होगी।

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  6. सुख दुःख जीवन भर साथ ही चलते हैं .अपनों का जाना मर्मान्तक पीड़ा देता है . पशु पक्षी भी घर का हिस्सा हो जाते हैं तो उनसे लगाव स्वाभाविक है .
    मगर पीड़ा में कविता के भाव अच्छी तरह प्रस्तुत हुए !
    शुभकामनायें !

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  7. बचपन में एक स्वान पाला था ,उसने मुझे कई विपत्तियों में मेरी रक्षा की .वह अमावश्या,पूर्णिमा में खाना नहीं खाता था .क्या कारण ?,पता तो नहीं लगा .पर उसकी मृत्यु के बाद हमने कोई स्वान नहीं पाला .
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
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  8. फ़िक्र अंजाम की करने को,मत कहो उनसे,
    जो कफ़न बांधे फिरतें हो, हर वक्त सर में ...

    दुख तो होता है जाने का फिर जो साथ रहा हो चाहे बेजुबान ही क्यों न हो ...
    कुछ कुछ गम का एहसास आपकी कलम से भी हो रहा है ... पर जीवन चलता रहता है ...
    बहुत लाजवाब और कहता हुआ शेर है ...

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  9. मनुष्य से अधिक स्नेही,बफ़ादार और निस्स्वार्थ होते हैं श्वान.अपने आश्रयदाता के लिये स्वयं को दाँव लगाने मे भी कभी नहीं चूकते !और यह भी सच है कि अच्छे व्यक्ति के साथ रह कर उनकी चेतना का स्तर विकास पा लेता है !

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  10. यही दुनिया का दस्तूर है भाईजी, वक्त ही मरहम बनेगा।

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  11. आप सभी मित्रों का तहे-दिल से आभार व्यक्त करता हूँ !

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  12. मन को स्पर्श भावपूर्ण और वर्तमान के सच को
    व्यक्त करती रचना
    बहुत सुंदर
    बधाई


    आग्रह है पढ़ें "बूंद-" मेरे ब्लॉग"उम्मीद तो हरी है' में सम्मलित हों
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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