Tuesday, April 30, 2019

लातों के भूत।

दिनभर लडते रहे,
बेअक्ल, मैं और  मेरी तन्हाई,
बीच बचाव को,
नामुराद अक्ल भी तब आई
जब स़ांंझ ढले,
घरवाली की झाड खाई।

संकल्प-२०२६

सलीके से न खुशहाली जी पाया, न फटेहाल में,  बबाल-ए-दुनियांदारी फंसी रही,जी के जंजाल में,  बहुत झेला है अब तक, खेल ये लुका-छिपी का, मस्ती में ...