ऐ प्रिय, नींद मेरी !
बस, यूं ही मगर, पता नहीं क्यों,
कुछ अनिश्चित ही लग रही है मुझे,
आज भी मुलाकात तेरी।
मस्तिष्क का मेरा सुक्ष्म 'उम्मीद रनवे'
और उसपर एहसासों की गहरी धुंध,
विचलित हो रहा है मन,
वैसे ही वीजिब्लिटी बहुत कम है,
ऊपर से पोर्ट पर ट्रैफिक कंजेशन।
जिस फ्लाइट से तुम आ रही हो,
उसे निष्ठुर ट्रैफिक कंट्रोलर
डाइवर्ट न कर दे कहीं,
इसी पशोपेश मे हूँ कि
वो आज भी सहीसलामत
लैंड कर पायेगी, अथवा नहीं।
ऐ प्रिय, नींद मेरी !
तेरे आने के इंतजार मे,
मैं पलकें बिछाए बैठा हूँ,
तु आ न आ, मर्जी तेरी।।
-'परचेत'