ऐ प्रिय, नींद मेरी !
बस, यूं ही मगर, पता नहीं क्यों,
कुछ अनिश्चित ही लग रही है मुझे,
आज भी मुलाकात तेरी।
मस्तिष्क का मेरा सुक्ष्म 'उम्मीद रनवे'
और उसपर एहसासों की गहरी धुंध,
विचलित हो रहा है मन,
वैसे ही वीजिब्लिटी बहुत कम है,
ऊपर से पोर्ट पर ट्रैफिक कंजेशन।
जिस फ्लाइट से तुम आ रही हो,
उसे निष्ठुर ट्रैफिक कंट्रोलर
डाइवर्ट न कर दे कहीं,
इसी पशोपेश मे हूँ कि
वो आज भी सहीसलामत
लैंड कर पायेगी, अथवा नहीं।
ऐ प्रिय, नींद मेरी !
तेरे आने के इंतजार मे,
मैं पलकें बिछाए बैठा हूँ,
तु आ न आ, मर्जी तेरी।।
-'परचेत'
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(18-02-2020 ) को " अतिथि देवो भवः " (चर्चा अंक - 3622) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
एक विशिष्टता है आपकी लेखनी में । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय परचेत जी
ReplyDeleteआभार, सर।
Deleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार, अनुराधा जी।
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