शीत-ऋतू, मुफ्त़ भेडों को कंबल देगा,
कुछ ऐसे ही वादों से गिरगिट लुभाए,
लालच के अंधे कोई यह भी न पूछे,
कंबल बनाने को ऊन कहांं से आए।
कुर्सी पाने को किसहद मुफ्त़मारी रहेगी,
तहक़ीकात अभी जारी रहेगी।।
कुछ तो उपचार की कमियां रही होगीं
विध्वंसता मे दुश्मन के मांद की,
वरना आज दीवार यूं न डगमगाती
मानव सब्र के बांध की।
लुचपने की टीस कबतक कष्टकारी रहेगी,
तहक़ीकात अभी जारी रहेगी।।
कुछ ऐसे ही वादों से गिरगिट लुभाए,
लालच के अंधे कोई यह भी न पूछे,
कंबल बनाने को ऊन कहांं से आए।
कुर्सी पाने को किसहद मुफ्त़मारी रहेगी,
तहक़ीकात अभी जारी रहेगी।।
कुछ तो उपचार की कमियां रही होगीं
विध्वंसता मे दुश्मन के मांद की,
वरना आज दीवार यूं न डगमगाती
मानव सब्र के बांध की।
लुचपने की टीस कबतक कष्टकारी रहेगी,
तहक़ीकात अभी जारी रहेगी।।
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