बयां हरबात दिल की मैं,सरे बाजार करता हूँ,
हुआ अनुरक्त जबसेे मैं,तेरी हाला का,ऐ साकी,
तलब-ऐ-शाम ढलने का,मैं इन्त्तिजार करता हूँ।
नहीं अच्छा हद से कुछ,कहते लोग हैं मुुुझसे,
मगर तेरे इस़रार पर,मैंं हर हद पार करता हूँ।
खुद पीने में नहीं वो दम,जो है तेरे पिलाने में,
सरूरे-शब तेरी निगाहों में,मैं इक़रार करता हूँ।
ईशाद तेेरा कुछ ऐसा,मुमकिन नहीं कि ठुकरा दूँ,
जाम-ऐ-शराब-ऐ-मोहब्बत,मैं कब इंकार करता हूँ।
कुछ तो बात है तुझमे,तेरी मधु से प्यार करता हूँ।