Monday, September 15, 2008

तुझसे क्या कहू?



खौफ भी संग अपने 'नाक' जोड़ता है,
और 
दर्द की भी अपनी इक 'नाक' होती है, 
साथ ही 
इक 'नाक' शर्म से भी जुडी  रहती है। 
अर्थात,
हर किसी की किंचित 'हद' तय है।  
मगर 
अरे  वो बेख़ौफ़,बेदर्दी और वेशर्म !
अब 
उससे क्या कहें जिसकी 'नाक' ही नहीं।  


दास्तां!

जिंदगी पल-पल हमसे ओझल होती गई, साथ बिताए पलों ने हमें इसतरह रुलाया, व्यथा भरी थी हर इक हमारी जो हकीकत , इस बेदर्द जगत ने उसे इत्तेफ़ाक बताया...