Tuesday, June 8, 2010

भ्रष्ट राजनीति और रसूकदारों की रखैल बनकर रह गई है, हमारी यह न्याय व्यवस्था !

शुरू करने से पहले एक छोटी सी पहेली ; "यू मस्ट ब्रिंग दी चेंज" (You must bring the change !)
यह महान वाक्य किसने कहा ?
अगर न मालूम हो तो आप इसका उत्तर लेख के नीचे देख सकते है ।


किस तरह हमारी न्यायिक व्यवस्था की खामियों को अपने फायदे का हथियार बना ये न्यायतंत्र के खिलाड़ी इस कमजोर लोकतांत्रिक ढाँचे की खिल्ली उड़ा सकते है, यह आजकल आ रहे न्यायालयों के भिन्न-भिन्न फैसलों से स्पष्ट है। कम से कम अभी हाल ही में रुचिका-राठौर केस में हरियाणा की एक अदालत का फैसला, व कल ही आया भोपाल त्रासदगी का फैसला तो इसी बात की तरफ इशारा करते है कि हमारी यह न्यायव्यवस्था भ्रष्ट राजनीतिज्ञों और रसूकदारों की रखैल बन कर रह गई है।

वह त्रासदी दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी थी। हजारों लोग और जानवर इसमें मारे गए। जो इसकी चपेट में आने के बाद भी बच गए, उनके लिए सही दवाओं का इंतजाम अभी तक नहीं हो पाया है। सिर्फ उनके लक्षणों को देखकर उन्हें दवाएं दी जाती हैं। असली मर्ज की दवा उन्हें नहींमिली। यही कारण है कि वे अभी भी गैस के शिकार हैं। और इन फैसलों और न्याय में देरी से यह भी साफ़ तौर पर जाहिर है कि हमारे देश का कमजोर न्याय तंत्र भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। यह स्थिति इससे भी स्पष्ट हो जाती है कि सीबीआई द्वारा आरोप पत्र दाखिल किए गए १०००० के आस-पास मामले अब भी अदालतों में लंबित पड़े हैं! और ऐसा नहीं कि इसके लिए अदालतों के पास वक्तऔर साधनों की कमी हो, बल्कि कुछ बातों में जानबूझकर इन्हें लंबा खीचा जाता है। भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई में वर्षों लग जाते हैं, तथा इस देरी की वजह से बेइमान लोगों को भ्रष्टाचार अपनाने के लिए बढ़ावा मिलता है।

दूसरी तरफ आज सुबह एक और खबर पर नजर गई तो मैं अपनी हंसी नहीं रोक पाया। खबर यह थी कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली में एक डीटीसी कंडक्टर दलबीर सिंह को १९८९ में यात्रियों से डेड रूपये लेकर एक रुपये का टिकिट देने के आरोप में उसकी बर्खास्तगी को उचित ठहराकर उसकी याचिका को खारिज कर दिया। बहुत अच्छी बात है, एक न्यायपूर्ण फैसला है, मगर क्या यह न्यायपूर्ण फैसला सिर्फ एक कंडक्टर को ही बली का बकरा बनाने के लिए है ? क्या हमारे न्याय के ठेकेदार यह देखने की कोशिश करते है कि पिछले साठ सालों में देश में हुए खरबों रूपये के घोटालों में किसी एक राजनेता को सजा दी इन्होने ? क्या यह नैतिक शिक्षा सिर्फ एक निचले तबके के आम नागरिक के लिए ही है ?

हालांकि मैं सिर्फ न्याय व्यवस्था को ही दोष नहीं देना चाहूंगा, क्योंकि इस लोकतांत्रिक ढाँचे के जिन चार स्तंभों पर व्यवस्था टिकी है, उनमे से एक स्तंभ न्याय व्यवस्था है। यदि केवल इसमें ही खामियां होतीं तो सारी व्यवस्था ही सिर्फ एक और ही झुकी होती, मगर ऐसा नहीं है। और यह इसलिए है क्योंकि चारों स्तंभों में ढेरों खामियां हैं, इसीलिए इनमे बैलेंस बना हुआ है। लेकिन इन चारों स्तंभों में से सर्वाधिक जिम्मेदार स्तम्भ न्याय स्तम्भ होता है, क्योंकि जिस दिन लोगो का भरोसा इस स्तम्भ से पूरी तौर से उठ गया उस दिन यह देश पूर्णतया अराजकता के दल-दल में धंस जाएगा। और मुझे यह भी आशंका है जो कुछ चल रहा है, धीरे- धीरे यह न्याय व्यवस्था जिस ओर जा रही है, वह दिन भी ज्यादा दूर नहीं लगता है।

ओर अब ऊपर पूछी गई पहेली का सही जबाब:
बस के कंडक्टर ने !!!!!

22 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर और सार्थक शीषक ,पूरी इंसानियत के लिए शर्मनाक है भोपाल गैस कांड पर आया फैसला ,ऐसे ही फैसलों से अच्छे से अच्छे लोगों का भी आस्था खत्म हो जाता है कानून और न्याय पर से |

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  2. बहुत ही सुन्दर और सार्थक शीषक

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  3. saleem khaan sahaab , mukh mein alha-alha aur bagal mein chhurri , samajh hee gaye honge aap ki kyon kahaa maine aisaa, khair I LEAST BOTHER ABOUT IT !

    Haan tippani ke liye bahut bahut dhanyvaad,

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  4. @गोदियाल जी

    आपको नहीं लगता की आज ऐसी न्याय व्यवस्था की ज़रुरत है जिसमें फैसला आने में कम से कम 3 दिन लगें और ज्यादा से ज्यादा 1 हफ्ता .

    महक

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  5. @Mahak ji
    वैसे इतना भी नहीं, मगर अपराध के हिसाब से न्याय दिया जाना चाहिए ! किसी भी मामले में अधिकतम समय सीमा दो साल, वैसे मैं तो On The spot न्याय का हिमायती हूँ !

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  6. बहुत सटीक और उम्दा आलेख | आपके विचारो से सहमत हूँ !

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  7. गोदियाल साहब, हम और आप जितना भी चिल्ला लें, अफसर और नेता मिलकर देश को यूंही धोखा देते रहेंगे...

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  8. The law has its own definition. The punishment for the "culpable homicide not amounting to murder" is just Two years then how can you lynch Anderson. there is no room for emotion in the law. If you respect the rule of Law then respect the verdict. just criticizing the law and courts are become fashion for the media/People.
    it may be presumed that the said tragedy is not done in cold blood or done deliberately, it was merely a accident which occurs due to negligence and you can not penalize a person to Capital Punishment for a crime of negligence.

    Yes i admit that the said Tragedy was a Havoc but it can not be defined as a genocide/mass killing. that was a very unfortunate story, and it needs to be dealt with a sound and logical reasoning

    i admit that the people affected due to that accident should be compensated properly and this is the task of Government. if affected people were not compensated properly how is Anderson responsible. Take the responsibility and compensate the people. that will be the right Justice

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  9. Madhav ji, to some extent I agree with you but at the same time we have to keep in our mind that this is a man made disaster and there is someone to blame> Because of someone's negligence more than 15000 people and equivalent number of animals died. Imagin,if tomorrow any atomic disaster happens due to negligence then? So a stong message need to be given. aur yah bahut pahle kiyaa jaana chahiye tha.

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  10. बहुत बढिया पोस्ट!वैसे देखा जाए तो अराजकता तो फैल ही चुकी है...यदि सही मार्ग दर्शन ना मिला तो तो देश को संभालना बहुत मुश्किल हो जाएगा...

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  11. One more thing I would like to say Madhav ji. As you said " If you respect the rule of Law then respect the verdict. just criticizing the law and courts are become fashion for the media/People." if I'm a law abiding citizen, it is not necessary that I should accept all the verdicts with folded hands. Today our judiciary badly needed a healthy debate, if we want to bring some improvements.

    One simple question:
    Why and what for the Indian courts could not decide the issue after 26years?

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  12. बहुत सार्थक पोस्ट.... यहाँ सब छोटी मछली को पकड़ कर न्याय की बात करते हैं...बड़ी को तो हाथ भी नहीं लगते...

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  13. bahut hi saarthak our satik post....aaj ke saare nyaaydhish bik chuke hai......nyaayaalay ko sahi nahi kiyaa gayaaa to is desh kaa bhagawaan hi maalik hai..... practical baat bataa rahaa hun 99 % maamale me nyaayaalay anyaay karti hai.....

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  14. gondiyaal saaheb....aapne rakhail shabd kaa sahi use kiyaa hai.....mai daave ke saath kah sakataa hun aaj ke 99 % jaj bik chuke hain, isliye faisale ke naam par sirf anyaay karate hain....naxalvaadi samasya our jurm kaa mul kaaran aaj ke court hain.

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  15. जिस देश के क़ानून मंत्री ये कह रहे हैं की भोपाल गैस केस में न्याय की मौत हुई है ... उनसे क़ानून की रखवाली के बारे में सोचना ही पाप है ...

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  16. सच है.. पर मेरी समझ में चारों स्तम्भ ही खोखले हैं..

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  17. जब विदेश मंत्रालय के एक रिटायर्ड अधिकारी ने बयान दिया कि - एण्डरसन मामले को आगे न बढ़ाने के लिये उन पर "दबाव" था, तो कानून मंत्री कहते हैं कि रिटायर्ड अधिकारी कुछ भी बकते रहते हैं।

    लेकिन हर घटना-दुर्घटना के बाद मंत्रीगण भी तो "हम कड़ी निन्दा करते हैं…", "अपराधियों को बख्शा नहीं जायेगा" टाइप की बकवास करते हैं तब कौन इनका फ़टा हुआ मुँह बन्द कर सकता है।

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  18. गोदियाल साहब मेरा तो कहना ही ये है कि ये
    व्यवस्था अंग्रेजों ने अपनी सुरक्षा के लिए
    बनायीं थी शायद यही सुरक्षा हमारे आजादी के
    बाद वाले नेताओं को अपने लिए चाहिए थी
    इसीलिए उन्होंने ये लागु रखी | मेरा आज का ब्लॉग का विषय यही है | आपका लिखा बहुत ठीक लगा |

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  19. सामयिक व ज्वलन्त समस्या ।

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  20. ब्रिटेन के Simon Phillip Cowell ने कहा था.... You must bring the change ..... यह एक टेलेविज़न प्रोडूसर हैं.... और ब्रिटेन के चुनाव के दौरान इन्होने यह वाक्य कहा था..... क्योंकि चारों स्तंभों में ढेरों खामियां हैं, इसीलिए इनमे बैलेंस बना हुआ है... यह बात आपने एकदम सही और सटीक कही.... बहुत अच्छी और सार्थक पोस्ट....

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।