पहनकर नकाब हसीनों ने, कुछ पर्दानशीनों ने,
गिन-गिनकर सितम ढाये, बेदर्द महजबीनों ने।
क़ातिल बड़े शातिराना थे हर अंदाज नवाबिन के,
शब्द कसैले दिलों ने खाए, तीर बिषैले सीनो ने।
अंदाज-ए-ज़ुल्म वो उनका,करें तो बयां किसको ,
कर लिया किनारा अब तो, भरोसे से यक़ीनों ने।
उलटी बही जो गंगा इस चुनार से उस चुनार तक,
जौहरी को जमकर परखा, खोटे-खरे नगीनों ने।
बेढंग यूं हो गया 'परचेत',सिलसिला ऋतुओं का ,
जिस्म को परेशां किया है,शरद में पसीनों ने।
बेढंग यूं हो गया 'परचेत',सिलसिला ऋतुओं का ,
जिस्म को परेशां किया है,शरद में पसीनों ने।
उड़ता देखते रहे सब, उस तंत्र के उपहास को,
ReplyDeleteकुछ जो फरेबियों ने उड़ाया,कुछ तमाशबीनों ने ...
Great couplets...
Excellent creation.
.
आपकी पोस्ट कल शनिवार के चर्चा मंच पर लगा दी है।
ReplyDeleteउड़ता देखते रहे सब, उस तंत्र के उपहास को,
ReplyDeleteकुछ जो फरेबियों ने उड़ाया,कुछ तमाशबीनों ने !
धारदार रचना.......
बहुत खूब..
सादर.
खाए जाओ, खाए जाओ
ReplyDelete'नवाबिन' के गुण गाये जाओ:)
गोदियाल जी, सीने ही मजबूत करने होंगे तीर सहने ही होंगे, सच में हम सब कठपुतलियाँ है|
उड़ता देखते रहे सब, उस तंत्र के उपहास को,
ReplyDeleteकुछ जो फरेबियों ने उड़ाया,कुछ तमाशबीनों ने !
बहुत बढिया ...
सशक्त ....रचना ...!!
शुभकामनायें
Waah.... Zabardast!!!
ReplyDeleteलाजवाब !!
ReplyDeleteसशक्त लाजबाब प्रस्तुति
ReplyDeleteनिष्कपटता,नेकनीयती की नक्काशी के साँचों में,
ReplyDeleteजौहरी को जमके परखा,सब खोटे-खरे नगीनों ने !... वाह
करम की गति न्यारी संतों ...
ReplyDeleteभाई जी .
ReplyDeleteएक दम सटीक ...
उड़ता देखते ही रहे सब, उस तंत्र के उपहास को,
कुछ जो फरेबियों ने उड़ाया, कुछ तमाशबीनों ने !
हम सब को शुभकामनाएँ..???
गजब अन्दाज ए बयां..
ReplyDeleteरचना में वही पुराना जोश नज़र आ रहा है . बहुत खूब .
ReplyDeleteumda prastuti....lajwab
ReplyDeleteहैरान हैं बहुत नवाबिन के, शातिराना अंदाज से,
ReplyDeleteशिद्दत से खाया मगर 'परचेत', हर तीर सीनों ने ! बहुत सुन्दर है तीरे तरकश ..बढ़िया ग़ज़ल अलग अंदाज़ और परवाज़ अलफ़ाज़ लिए ..बधाई .. .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
शनिवार, 26 मई 2012
दिल के खतरे को बढ़ा सकतीं हैं केल्शियम की गोलियां
http://veerubhai1947.blogspot.in/तथा यहाँ भी ज़नाब -
तीर खाए लगते हो वह भी नवाबिन से।तभी तो इतनी सुन्दर रचना बन पड़ी है। शुक्रिया।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ... जय हो ...
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - माँ की सलाह याद रखना या फिर यह ब्लॉग बुलेटिन पढ़ लेना
बहुत बढिया गोदियाल सर ।
ReplyDeleteडॉलरिया गस खिला रहे , ईंधन में आग लगा रहे,
ReplyDeleteअध-मरों को अबके पूरा, मार दिया कमीनों ने !..
वाह जी वाह ... डालर भी तो इन्ही लोगों ने बदाय है ...
वैसे देख लो कहीं बाहरी ताकतों का हाथ तो नहीं ...
उड़ता देखते रहे सब, उस तंत्र के उपहास को,
ReplyDeleteकुछ जो फरेबियों ने उड़ाया,कुछ तमाशबीनों ने ...
..bahut khoob kaha aapne...
..
गोदियाल जी आनंद आ गया ....
ReplyDelete