Friday, May 25, 2012

नवाबिन और कठपुतली !









पहनकर नकाब हसीनों ने, कुछ पर्दानशीनों ने,
गिन-गिनकर सितम ढाये, बेदर्द महजबीनों ने।  

क़ातिल बड़े शातिराना थे हर अंदाज नवाबिन के,

शब्द कसैले दिलों ने खाए, तीर बिषैले सीनो ने।     

अंदाज-ए-ज़ुल्म वो उनका,करें तो बयां किसको , 

कर लिया किनारा अब तो, भरोसे से यक़ीनों ने।   

उलटी बही जो गंगा इस चुनार से उस चुनार तक, 
जौहरी को जमकर परखा, खोटे-खरे नगीनों ने।  

बेढंग यूं हो गया 'परचेत',सिलसिला ऋतुओं का ,
जिस्म को परेशां किया है,शरद में पसीनों ने।  

21 comments:

  1. उड़ता देखते रहे सब, उस तंत्र के उपहास को,
    कुछ जो फरेबियों ने उड़ाया,कुछ तमाशबीनों ने ...

    Great couplets...

    Excellent creation.

    .

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  2. आपकी पोस्ट कल शनिवार के चर्चा मंच पर लगा दी है।

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  3. उड़ता देखते रहे सब, उस तंत्र के उपहास को,
    कुछ जो फरेबियों ने उड़ाया,कुछ तमाशबीनों ने !

    धारदार रचना.......
    बहुत खूब..

    सादर.

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  4. खाए जाओ, खाए जाओ
    'नवाबिन' के गुण गाये जाओ:)

    गोदियाल जी, सीने ही मजबूत करने होंगे तीर सहने ही होंगे, सच में हम सब कठपुतलियाँ है|

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  5. उड़ता देखते रहे सब, उस तंत्र के उपहास को,
    कुछ जो फरेबियों ने उड़ाया,कुछ तमाशबीनों ने !

    बहुत बढि‌या ...
    सशक्त ....रचना ...!!
    शुभकामनायें

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  6. सशक्त लाजबाब प्रस्तुति

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  7. निष्कपटता,नेकनीयती की नक्काशी के साँचों में,
    जौहरी को जमके परखा,सब खोटे-खरे नगीनों ने !... वाह

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  8. करम की गति न्यारी संतों ...

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  9. भाई जी .
    एक दम सटीक ...
    उड़ता देखते ही रहे सब, उस तंत्र के उपहास को,
    कुछ जो फरेबियों ने उड़ाया, कुछ तमाशबीनों ने !

    हम सब को शुभकामनाएँ..???

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  10. रचना में वही पुराना जोश नज़र आ रहा है . बहुत खूब .

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  11. हैरान हैं बहुत नवाबिन के, शातिराना अंदाज से,
    शिद्दत से खाया मगर 'परचेत', हर तीर सीनों ने ! बहुत सुन्दर है तीरे तरकश ..बढ़िया ग़ज़ल अलग अंदाज़ और परवाज़ अलफ़ाज़ लिए ..बधाई .. .कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    शनिवार, 26 मई 2012
    दिल के खतरे को बढ़ा सकतीं हैं केल्शियम की गोलियां
    http://veerubhai1947.blogspot.in/तथा यहाँ भी ज़नाब -

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  12. तीर खाए लगते हो वह भी नवाबिन से।तभी तो इतनी सुन्दर रचना बन पड़ी है। शुक्रिया।

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  13. बहुत बढिया गोदियाल सर ।

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  14. डॉलरिया गस खिला रहे , ईंधन में आग लगा रहे,
    अध-मरों को अबके पूरा, मार दिया कमीनों ने !..

    वाह जी वाह ... डालर भी तो इन्ही लोगों ने बदाय है ...
    वैसे देख लो कहीं बाहरी ताकतों का हाथ तो नहीं ...

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  15. उड़ता देखते रहे सब, उस तंत्र के उपहास को,
    कुछ जो फरेबियों ने उड़ाया,कुछ तमाशबीनों ने ...
    ..bahut khoob kaha aapne...
    ..

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  16. गोदियाल जी आनंद आ गया ....

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।