देख रहा हूँ कि मार्क्स, मैकॉले और इब्न रुश्द के मुखौटों में छिपे कुछ पश्चमी दलाल श्री दीना नाथ बत्रा जी की किताब पर काफी हायतौबा मचाये हुए हैं। वेंडी डोनिजर की तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह से गलत किताब का बचाव करने के लिए तो ये स्वार्थांध दौड़ पड़े थे, वह सिर्फ इसलिए क्योंकि मामला एक पश्चमी लेखिका से सम्बद्ध था। और जो उन अनेक भारतीयों की यह मानसिकता भी दर्शाता है कि स्वदेशी को फेंक देना चाहिए और अगर कोई चीज पश्चिम से आ रही है तो उसे तुरंत आत्मसात कर लेना चाहिए। वाह !
जिस प्रखरता से आज ये कुछ मौकापरस्त दीनानाथ जी की किताब के खिलाफ बोल रहे है, मैं समझता हूँ कि इन मानसिक तौर पर दिवालिये लोगों को अगर ज़रा भी अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति लगाव और सम्मान होता तो यही प्रखर विरोधी स्वर तब सुनाई देने चाहिए थे, यह प्रचंड विरोध उनका तब सामने आनी चाहिए था जब वेंडी डोनिजर ने अपनी उस बकवास किताब में लक्ष्मण और माता सीता के सम्बन्धो पर ऊँगली उठाई थी। और अगर उसके तथ्य इतने ही सुदृढ़ थे तो तब पेंगुइन और वेंडी को उस किताब का बचाव अदालत में करने की सलाह दी गई थी, वे क्यों नहीं आये ? क्योंकि उन्हें भी असलियत मालूम थी। अगर इन तथाकथित क्षद्म-सेक्युलर मौकापरस्तों में ज़रा भी स्वाभिमान होता तो ये उस समय पश्चमी मीडिया, जोकि तब यह प्रचारित कर रहा था कि हिन्दुत्ववादियों की हिंसा और बदमाशी की वजह से किताब प्रतिबंधित करनी पडी , उसे जाकर यह सच्चाई बताते कि किताब तथ्यात्मक रूप से गलत थी।
अगर दीना नाथ जी अपनी किताब में यह कह रहे है कि हिन्दू होने के नाते जन्मदिन पर कैंडिल जलाने की बजाये, घर में हवन करो, तो क्या गलत कह दिया भाई? हवन का वैज्ञानिक महत्व भी सभी जानते हैं। अगर हमारे बच्चों को हमारी समृद्ध पौराणिक परम्पराओं से सही तरीके से अवगत कराया जाए तो उसमे बुराई क्या है? ठीक है, और मैं भी स्वीकारता हूँ कि बहुत सी पौराणिक कहानिया कपोल-काल्पनिक होंगी एवं विकास के लिए आज एक अग्रणी सोच बच्चों में अवश्य होनी चाहिए, मगर उसका मतलब सिर्फ यह नही कि हम वह अग्रणी सोच सिर्फ पश्चिम से आत्मसात करें। यदि पश्चमी सोच इतनी ही अग्रणी है तो अमेरिका और यूरोप के बच्चे आज एशियाई बच्चों से पिछड़ क्यों रहे है ? जब रामायण अथवा महाभारत की बात आती है तो आप लोग उस आधार पर हिन्दू धर्म की बहुत सी खामिया गिनाने की कोशिश करते हो, किन्तु अगर उसे सत्य मानते हो तो इस तथ्य को सत्य मानने में क्यों दिक्कत होती है आपको कि रावण के पास उस वक्त भी विमान थे ?
और भैया, अगर आपको बहुत ही ज्यादा दर्द हो रहा है तो बजाय इधर उधर हो-हल्ला मचाने के दीनानाथ जी की किताब को अदालत में चुनौती दो, अगर हिम्मत है तो।