मन्ना डे जी का गाया हुआ एक गाना है,…… " कुछ ऐसे भी पल होते है "
उसी पर एक पैरोडी बनाई है;
कुछ ऐसे भी बेअक्ल होते हैं, जो अक्लमंदों की हर बात पे रोते है,
समझते तो खुद को बहुत ज्ञानी है, किन्तु होते असल में खोते है।
कुछ ऐसे भी बेअक्ल होते हैं ............................
ये 'वाद'यही गाते है कि गधा खेत खाए और कुम्हार मारा जाए',
किस से छीने और किसका खाएं, हर वक्त यही ख्वाब संजोते है।
कुछ ऐसे भी बेअक्ल होते हैं ............................
समझते है, जग है सारा इनका, हो जाता ऐसे ही गुजारा इनका,
औरों की करके नींद हराम, खुद चैन की गहरी नींद में सोते हैं।
कुछ ऐसे भी बेअक्ल होते हैं ............................
नीरव चाहे जब कोई,ये आकर के शोर मचाते हैं दुनिया भर का,
लत है इन्हे हराम का खाने की, हरतरफ नफरत के बीज बोते है।
कुछ ऐसे भी बेअक्ल होते हैं ............................
स्तवन न कर पाते अच्छाई का, चुभता है दर्पण सच्चाई का,
भागते हैं दूर सदा सच से, घड़ियाली अश्रुओं से नैन भिगोते है।
कुछ ऐसे भी बेअक्ल होते हैं ............................