मन्ना डे जी का गाया हुआ एक गाना है,…… " कुछ ऐसे भी पल होते है "
उसी पर एक पैरोडी बनाई है;
कुछ ऐसे भी बेअक्ल होते हैं, जो अक्लमंदों की हर बात पे रोते है,
समझते तो खुद को बहुत ज्ञानी है, किन्तु होते असल में खोते है।
कुछ ऐसे भी बेअक्ल होते हैं ............................
ये 'वाद'यही गाते है कि गधा खेत खाए और कुम्हार मारा जाए',
किस से छीने और किसका खाएं, हर वक्त यही ख्वाब संजोते है।
कुछ ऐसे भी बेअक्ल होते हैं ............................
समझते है, जग है सारा इनका, हो जाता ऐसे ही गुजारा इनका,
औरों की करके नींद हराम, खुद चैन की गहरी नींद में सोते हैं।
कुछ ऐसे भी बेअक्ल होते हैं ............................
नीरव चाहे जब कोई,ये आकर के शोर मचाते हैं दुनिया भर का,
लत है इन्हे हराम का खाने की, हरतरफ नफरत के बीज बोते है।
कुछ ऐसे भी बेअक्ल होते हैं ............................
स्तवन न कर पाते अच्छाई का, चुभता है दर्पण सच्चाई का,
भागते हैं दूर सदा सच से, घड़ियाली अश्रुओं से नैन भिगोते है।
कुछ ऐसे भी बेअक्ल होते हैं ............................
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (22-08-2015) को "बौखलाने से कुछ नहीं होता है" (चर्चा अंक-2075) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह ... कमाल की प्रस्तुति है ... सच के करीब लिखा हर छंद ...
ReplyDeleteवाह वाह...दुनिया में ये गधे बहुतायत में पाए जाते हैं.....
ReplyDeleteआप अपने फन में होशियार हैं .....डटे रहिये | खुश और स्वस्थ रहें |
ReplyDeleteशुभकामनायें |
आभार आपका सलूजा साहब। अच्छा लगा एक लम्बे अंतराल के बाद आपको अपने ब्लॉग पर पाकर !
Deleteबेअक्ल लोगों की कोई कमी नहीं है दुनिया में ......
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा ....