रहन ग़मों से अतिभारित,
काँटों से भरी आवागम दी,
मन तुषार,आँखों में नमी ज्यादा,
सांसो में हवा कम दी,
तक़ाज़ों का टिफिन लेकर,
सिर्फ़ इतनी सी ग़िला तुझसे ,
कि ऐ ज़िन्दगी, तूने हमें,
दर्द ज्यादा और दवा कम दी।
कहीं गले ही न पड़ जाए, इस डर से कभी किसी ने भेंटा ही नहीं,
अपने बाजूओं को फैलाकर तहेदिल से किसी ने लपेटा ही नहीं,
यहां सिर्फ कांच के टुकड़ों सी बिखरकर रह गई है तू ऐ जिंदगी ,
बदकिस्मत, हाथ कटने के डर से तुझे किसी ने समेटा ही नहीं।
Shukriya, Shashtri ji
ReplyDeleteसुन्दर ai जिन्दगी तूने हमें दर्द ज्यादा दवा कम दी
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteजिंदगी से गिला तो हर किसी को रहता है ...
ReplyDeleteलाजवाब लिखा है जी ..