Tuesday, November 12, 2019

पहेलियां जीवन की।



उत्कर्ष और अप्कर्ष,
कहीं विसाद,कहीं हर्ष,
अस्त होता आफताब,
उदय होता माहताब,
बहुत ही लाजवाब।

कैंसी मौनावलंबी 
ये इंसानी हयात ,
जिस्मानी मुकाम,
उद्गम जिसका आब,
और चरम इसका 
शबाब और शराब।

अंततोगत्वा जिन्दगी
बस, इक अधूरा ख्वाब।
अस्त होता आफताब,
उदय होता माहताब,
बहुत ही लाजवाब।।


वक्त की परछाइयां !

उस हवेली में भी कभी, वाशिंदों की दमक हुआ करती थी, हर शय मुसाफ़िर वहां,हर चीज की चमक हुआ करती थी, अतिथि,आगंतुक,अभ्यागत, हर जमवाडे का क्या कहन...