Tuesday, November 12, 2019

पहेलियां जीवन की।



उत्कर्ष और अप्कर्ष,
कहीं विसाद,कहीं हर्ष,
अस्त होता आफताब,
उदय होता माहताब,
बहुत ही लाजवाब।

कैंसी मौनावलंबी 
ये इंसानी हयात ,
जिस्मानी मुकाम,
उद्गम जिसका आब,
और चरम इसका 
शबाब और शराब।

अंततोगत्वा जिन्दगी
बस, इक अधूरा ख्वाब।
अस्त होता आफताब,
उदय होता माहताब,
बहुत ही लाजवाब।।


3 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
    iwillrocknow.com

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  2. बहुत ही लाज़वाब
    बहुत ही लाज़वाब।

    वाह... वाह।
    ऐसी रचना बहुत दिनों बाद पढ़ी है।
    कुछ पंक्तियां आपकी नज़र 👉👉 ख़ाका 

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  3. हर दिन एक नई सुबह होती जरूर है लेकिन सबके लिए एक सा नहीं
    बहुत सुन्दर

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।