Thursday, October 27, 2011

बस एक टिकाऊपन का ही भय है वरना तो..... !

यह एक आम धारणा रही है कि अपने आस-पास के माहौल और घटित होती घटनाओं से इंसान रूपी प्राणि न सिर्फ सबक लेता है अपितु अपनी जीवनचर्या में यथार्थ के धरातल पर उतारने की कोशिश भी करता है! लेकिन जहां तक मैं समझ पाया हूँ, मुझे नहीं लगता कि हम हिन्दुस्तानियों में ऐसा कोई गुण भी विद्यमान है! पिछले एक दशक से लगातार यह नोट करता आ रहा हूँ कि हर क्षेत्र, खासकर उत्पादों के मामले में हमारा देश निरंतर चीन-आश्रित होता जा रहा है! और हो भी क्यों न जब उसे इतने कम दामों में फिलहाल अपना काम चलता नजर आ रहा हो?



अक्सर हमारे सूचना माध्यम इस बात की शिकायत करते आपने सुने होंगे कि चीन हमारी सरहदों का उल्लंघन कर रहा है, जोकि निश्चित तौर पर एक चिंता का विषय है! किन्तु उससे भी गंभीर चिंता का विषय यह है कि जहां एक ओर चीन आज न सिर्फ हमारे देश की सरहदें बल्कि हमारी व्यक्तिगत सरहदों को तोड़ने में सक्षम हो रहा है, वहीं हम जाने-अनजाने अपनी उत्पाद जरूरतों के मामले में निरंतर चीन निर्मित माल पर आश्रित होकर अपनी हदों का उल्लघन करने के दोषी खुद भी है!



कल समूचे देश ने पूरे जस्नोजोश में दीपावली का त्यौहार मनाया ! घरों एवं बाजारों में जो चहल-पहल थी, उसके बीच में आप लोगो ने भी इस बात को भलीभांति महसूस किया होगा कि हरएक कदम पर हमें चीन में बने उत्पादों के दर्शन बहुतायात में हो रहे थे! चाहे वह मकान,दुकानों को फैंसी लाइटों से सजाने की बात हो, दीयों और मोमबत्तियों की बात हो, गिफ्ट आइटमों की बात हो, पटाखों की बात हो अथवा घर में लक्ष्मी पूजन के लिए भगवान् गणेश और लक्ष्मी जी की मूर्तियों की बात हो, हर एक चीज चीन निर्मित थी, और देशी उत्पाद बाजार-घरों से नदारद थे ! बाजार में दुकानों पर कहीं देशी उत्पाद बिक्री के लिए यदि रखे भी थे तो उन्हें ग्राहकों का टोटा झेलना पड़ रहा था!



गत-वर्ष जब चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ भारत दौर पर आये थे तो तब जारी आंकड़ों में कहा गया था कि भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार साठ अरब डालर यानि लगभग ३० खरब रूपये के पार जा पहुंचा है ! और जिसमे दोनों देशों के मध्य व्यापार असंतुलन भी १०० फीसदी है, यानि ३० खरब रूपये के द्विपक्षीय व्यापार में भारत का चीन को निर्यात महज दस खरब रूपये का है, जबकि चीन से भारत का आयात २० खरब रूपये का है! भारत दुनियाभर से जो आयात करता है उसका कुल लगभग १२ प्रतिशत वह अकेले चीन से ही खरीदता है! अपने तीन दिवसीय भारत दौरे के दौरान चीनी प्रधानमंत्री ने पत्रकारों के सवालों का जबाब देते हुए यह आश्वाशन भी दिया था कि वे आईटी और अन्य क्षेत्रों के लिए व्यापार मार्ग खोलकर इस असंतुलन को कम करने के तुरंत प्रयास करेंगे, मगर जमीनी हकीकत क्या है, वह हम सभी जानते है ! अब ज़रा सन २००३ की इस खबर पर नजर डालिए ;भारत-चीन व्यापार का झुकाव भारत के पक्ष में: वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री अरुण जेटली ! अब सवाल यह उठता है कि यदि २००३ में द्विपक्षीय व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में बनता नजर आ रहा था तो फिर उसके बाद ऐसा क्या हुआ कि इतना बड़ा असंतुलन पैदा हो गया?



हकीकत यह है कि जनता को विकास का लॉलीपॉप थमा गुमराह करने वाली हमारी भ्रष्ट सरकारों के पास न ही कोई सुनियोजित विकास नीति है और न मुद्रास्फीति को नियंत्रित कर इस चीनी रणनीति का कोई तोड़ है! आज जहां एक ओर हर भारतीय त्वरित धनवान बनने की लालसा मन में पाले है, वही दूसरी तरफ यह भी एक तथ्य है कि हममे से कोई मेहनत भी नहीं करना चाहता ! एक अनुमान के आधार पर यह धारणा प्रचलित है कि यहाँ के २०% मेहनतकशों की कमाई पर बाकी के ८०% निठल्ले पलते है! हम यह क्यों नहीं सोचते कि वे क्या तरीके है जिनके बल पर चीन इतने सस्ते उत्पाद बना पाने में सक्षम है, चाहे भले ही वो टिकाऊ न हो? हम क्यों नहीं इन उत्पादों को अपने यहाँ पैदा करते या कर पाते है? सीधा सा जबाब है, लोगो की अकर्मण्यता और उदासीनता और ब्र्ष्ठ राज्नीतिएवम लालफीताशाही ! यहाँ अगर एक उद्यमी कोई उद्योग लगाने की सोचे भी तो फैक्ट्री बाद में उत्पादन शुरू करती है, इंस्पेकट्री राज पहले फैक्ट्री के गेट पर पहुँच जाता है, अपना हिस्सा लेने! कारखाने को पर्याप्त बिजली नहीं उपलब्ध हो पाती, ऊपर से युनिअनो की गुटबाजी का खौफ ! और उद्यमी भी जल्दी धन्ना सेठ बनना चाहता है, इसलिए बाजार में अपने उत्पाद की साख बनाने के बजाय किसी अच्छे साख वाले उत्पाद के नाम पर अपने उत्पाद को ऊँचे दामों में बेचने की फिराक में रहता है! यानि हर कदम पर मुसीबते और भ्रष्टता!



आज स्थिति चिंताजनक नहीं, भयावह है! यह मानकर चलिए कि चीन भारत का एक अच्छा मित्र नहीं हो सकता ! एक विकसित चीन कभी यह नहीं चाहेगा कि उसके पड़ोस में भी एक उसके मुकाबले वाला राष्ट्र हो, इसीलिये वह हर तरफ से भारत को घेरने में लगा है ! कितना हास्यास्पद है कि हमसे ही कच्चा लोहा और अन्य कच्चेमाल खरीदकर वह न सिर्फ हमी को बल्कि पूरी दुनिया को उसके उत्पाद बेच रहा है! वह अपने यहाँ निर्मित सामान पर मेड इन इंडिया का ठप्पा लगाने से भी नहीं चूकता ! हमारे पास जो प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता है/ थी, उसके उपयोग के लिए यहाँ कारखाने लगाने के खिलाफ पर्यावरण क्षरण और आदिवासियों के विस्थापन का कुछ तथाकथित "दबे-कुचलों के ठेकेदार" इतना रोना क्यों रोते हैं, इसकी एक वजह इनका कथित चीन प्रेम भी है, जिसका आप सहज अंदाजा लगा सकते है!



आज हमें ईमानदारी से यह प्रश्न खुद से करने की जरुरत है कि हम औद्योगिक उत्पादन और विनिर्माण क्षेत्र में क्यों चीन से पिछड़ रहे है? मैं समझता हूँ कि आज बीस खरब के सालाना चीनी उत्पादों के आयात का ज्यादा नहीं तो पांचवा हिस्सा तो हम सिर्फ होली और दिवाली मनाने में ही इस्तेमाल कर जाते है ! अब ज़रा सोचिये कि यही चार खरब का उत्पादन,व्यापार और उपभोग हम अपने ही देश में करते तो कितना रोजगार पैदा होता? चीन हमसे यह नहीं कह रहा कि हम उसका ही माल खरीदें, मगर हमारे आस-पास हालात ऐसे बना दिए गए है कि हमारे पास कोई और चारा भी नहीं रह गया है! अपने देशवासियों की उदासीनता देख जब कभी सोचने बैठता हूँ तो इस बात पर अचंभित भी होता रहता हूँ कि जिस तरह की आज हमारी नई पीढी पैदा होते ही अपने खर्च की लम्बी फेहरिस्त माँ-बाप के समक्ष पेश कर देती है, और जिस तरह आज के माता-पिता हर चीज का शोर्ट-कट ढूंढते हुए चाइनीज माल की ओर रुख करते है, शायद एक टिकाउपन का ही भय है जो माँ-बाप को घर में अपने लिए सस्ते चाइनीज नश्ल  के बच्चे  पैदा करने से रोक रहा होगा !!!!!



14 comments:

  1. गोदियाल साहब,
    औरों की नहीं कहता लेकिन अपनी बताता हूँ, शायद ही आज तक इस्तेमाल के लिये कोई चाईनीज माल खरीदा हो। एक दो बार बस ट्रेन में कुछ हल्का-फ़ुल्का लिया भी तो ये देखने दिखाने के लिये कि किस तरह इतना सस्ता प्रोडक्शन वो लोग अफ़ार्ड कर पाते हैं।
    अपने देश और देशवासियों के हितों की चिंता करना हर देश की सरकार का काम है, हमारे यहाँ यह नहीं हो पा रहा तो वाकई सोचने वाली बात है।

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  2. आम जनता को और चाइनिज माल को काहे को देष देना..जब अपना सिक्का ही खोटा हो। खुला बाजार अपनाया तो खुल कर मेहनत करो न भाई।

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  3. कहीं यह सदाशयता पुनः धोखा न दे दे।

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  4. जब तक हमारे जीवन में भारतीय गौरव की भावना नहीं आएगी तब तक यह तो होना ही है। ऐसा भी नहीं है कि चीन की सामग्री उच्च कोटि की होती है। घटिया और अल्प कालिक चलनेवाली विदेशी चोज़ों के पीछे भी हमारी दौड़ने की मानसिकता हमें न जाने कहां पहूचाए॥

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  5. अरे हां, गोदियाल जी मैं तो यह बताना ही भूल गया। एक भारतीय ने चीनी औरत से शादी की। कुछ वर्षों बाद वह मर गई। पडोसी ने पति को ढाढस बंधाते हुए कहा- यार, यह गनीमत समझ कि इतने दिन भी चली, आखिर वह चीनी चीज़ थी:)

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  6. पढकर जाना कि सचमुच आज स्थिति चिंताजनक नहीं, भयावह है !!

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  7. स्थिति चिंताजनक है !

    संजय भास्कर
    आदत....मुस्कुराने की
    पर आपका स्वागत है
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  8. सच कहा है आपने ... भारतवासी कुछ याद नहीं रखते ... स्वार्थी होते जा रहे अहिं और मोजूदा नीतियां तेज़ी से इस और ले जा रही हैं ... चीन की तरफ से हमने आँखें बंद कर रक्खी हैं ... स्थिति भयावह है ...

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  9. आपकी बातों से पूर्णरूप से सहमत हूँ। यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब एक बार फिर भगवान न करे मगर हमारे देश को गुलामी देखनी पद सकती है.... चिंतनीय एवं विचारनीय आलेख...
    समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/10/blog-post_27.html

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  10. इस लेख पर अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराने के लिए आप सभी का आभार व्यक्त करता हूँ !

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  11. बहुत सुन्दर!
    --
    कल के चर्चा मंच पर, लिंको की है धूम।
    अपने चिट्ठे के लिए, उपवन में लो घूम।

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  12. आपकी बातों से पूर्णरूप से सहमत हूँ। मगर स्थिति विचारणीय है

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  13. एक कडुवा सत्य.वास्तविक हालातों से अवगत कराता आलेख.

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  14. वास्तविकता से परिचय करवाता आपका आलेख अभूत अच्छा लगा|
    इन सूचनाओं को आम जनता तक प्न्हुन्चाने की आवश्यकता है तभी व्यक्ति निर्माण हो सकेगा और फिर भारत निर्माण|

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।