Sunday, February 17, 2019

बडा सवाल !

कार्य निर्विघ्न अमनसेतु का शुरू हो, इसी इंतजार मे भील हैं,
सिरे सेतु के कहांं से कहांं जोडें, असमंजस मे नल-नील हैं।

तमाम कोशिशें खारे समन्दर मे, मीठे जल की तलाश जैसी,
पथ कंटक भरा, तय होने अभी असंख्य श्रमसाध्य मील हैं।

नि:सन्देह रावण भी आज, लज्जित महसूस कर रहा होगा,
कुंठित कायरपन से अग्रज अपदूतों के, हो रहे जलील हैं।

खुबसूरत जमीं को दरकिनार कर,आरजू है जन्नत पाने की,
हुरों के चक्कर मे किए जा रहे, सभी कारनामेंं अश्लील हैं।

विकट प्रसंग, मनन का यह भी मुंंह बाये खडा है  'परचेत',
कटु,उग्र वृत्ति के आगे क्यों असहाय, शिष्टता और शील हैं।

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-02-2019) को "कश्मीर सेना के हवाले हो" (चर्चा अंक-3252) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 18/02/2019 की बुलेटिन, " एयरमेल हुआ १०८ साल का - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 13 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।