तमाम जिन्दगी की मुश्किलों से तंग आकर,
आत्महत्या का ख्याल
अपने बोझिल मन मे लिए,
मुम्बई की 'गरीबी'
'जुहू बीच' के समन्दर पर
पहुंची ही थी कि वहां उसे
श्रृगांरमय 'रेखा' नजर आ गई,
तज ख्याल, ठान ली जीने की फटेहाल।
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शायद इसी को "पोजेटिव सोच" कहते हैं??....😊
आत्महत्या का ख्याल
अपने बोझिल मन मे लिए,
मुम्बई की 'गरीबी'
'जुहू बीच' के समन्दर पर
पहुंची ही थी कि वहां उसे
श्रृगांरमय 'रेखा' नजर आ गई,
तज ख्याल, ठान ली जीने की फटेहाल।
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शायद इसी को "पोजेटिव सोच" कहते हैं??....😊
वाह .. जीने की चाह जैसे भी जागे वो पोजिटिव ही होती है ...
ReplyDeleteअच्छी रचना है ...
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (21-02-2019) को "हिंदी साहित्य पर वज्रपात-शत-शत नमन" (चर्चा अंक-3254) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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देश के अमर शहीदों और हिन्दी साहित्य के महान आलोचक डॉ. नामवर सिंह को भावभीनी श्रद्धांजलि
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी हां यही है पाजिटिव सोच
ReplyDeleteऔर शायद यही है गरीबी और रेखा के बीच संबंध