" वे ईमानदार आदमी हैं और करप्शन में उनके शामिल होने का
सीधा सबूत नहीं है। बहरहाल कोई रिमोट कंट्रोल है जो उनके फैसलों को तय
करता है और इसलिए उन पर संदेह है।"
एक बात मैं बिना विद्वेष के कह सकता हूँ कि इस मौजूदा दौर में देश-व्यापी भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन का जो बिगुल बजा, उसका क्रेडिट सर्वथा अन्ना को जाता है। और इसमें कोई शक की गुंजाइश भी नहीं होनी चाहिए कि अपनी काली करतूतों को दबाने की जो महारथ हमारे इन भ्रष्ट नेताओं को हासिल है , बेचैनी भले ही तमाम देश का नागरिक महसूस कर रहा हो , किन्तु अगर अन्ना बिगुल न बजाते, त्रस्त लोग साथ न आते, राजशाही और नौकरशाही के भ्रष्टाचार भले ही रोज उजागर होते, किन्तु लीपा-पोती के ये कुशल कामगार पेरिस प्लास्टर की पुट्टी और उच्च गुणवता वाले पेंट का वो अद्भुत मिश्रण इस्तेमाल करते कि इनके जीते जी तो क्या, इनकी अगली पुस्तों तक भी इनकी इस कारीगरी का रंग फीका नहीं पड़ता ।
लेकिन न जाने क्यों कभी-कभार मन का विश्वास डगमगाने लगता है, और सवाल पूछने लगता है कि क्या सचमुच अन्ना इस डूबती नैया को पार लगायेंगे ?
मेरी समझ में यह नहीं आता कि उन्हें ईमानदार और अच्छा बताने की जरुरत क्या है? उनकी इस इमानदारी और अच्छाई से देश को फ़ायदा क्या हुआ ? क्या यह एक तथ्य नहीं है कि एक शक्तिविहीन अच्छा आदमी भ्रष्टाचारियों के लिए एक ढाल बन रहा है ? इन सज्जन ने अच्छा वक्त कब इंजॉय किया जो ये कहें कि इस वक्त वे बुरे दौर से गुजर रहे है ? अन्नाजी कहते है कि इन्हें रिमोट कंट्रोल से संचालित किया जा रहा है , क्या इतने महत्वपूर्ण पद पर बैठे व्यक्ति को रिमोट से संचालित किया जा सकता है ? और यदि सचमुच वे रिमोट से संचालित हो रहे है तो फिर वह एक अच्छा इंसान कहाँ से हुआ ? मान लें कि उन्होंने कोई मौद्रिक लाभ नहीं लिया, फ़िर भी कुर्सी से तो चिपके है , यह जानते हुए भी कि उनके अधीन लोगो और उनके विश्वासपात्रों ने इस देश के साथ बहुत बड़ा धोखा किया । उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि क्या लूट चल रही है , फ़िर यदि वे अच्छे इंसान है और देश के हित की सोचते है तो फिर उन लुटेरों का बचाव क्यों किया जाता है उनके द्वारा ? और इसके बावजूद कोई यदि यह तर्क देता है कि उन्हें इन घोटालों की जानकारी नहीं थी तो वे तो फिर एक अयोग्य व्यक्ति हुए, अच्छे और ईमानदार इंसान कहाँ से हुए? साझा सरकार की मजबूरी बताते है, इसका मतलब क्या बस यही होता है कि साझा धर्म निभाते हुए आप सत्ता में बने रहने के लिए देश का नुकशान करवाओ? देश बड़ा है या फिर आपकी सत्ता ?
खिन्न और दुखी मन से यह कहना पड़ रहा है कि अन्ना और टीम अन्ना पहले सोच ले फिर बोलें तो बेहतर होगा, और जो बोले उसमे एक सुर हो सभी का। ऐसे में तो करप्ट लोगो की ही मौज़ है, वे तो यही चाहते है कि इनके बीच फूट पड़ जाए, कोई कुछ बोलेगा, कोई कुछ तो जनता का भी विश्वास उठेगा । कुछ चाटुकार मीडिया भी दो नावों में सवार होकर चलता है एक तरफ यह दिखाना कि वो भी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे है और दूसरी तरफ इस जुगत में रहना कि अन्ना या फिर टीम अन्ना कुछ उल्टा-सीधा बोले ताकि लोगो का उनपर से विश्वास उठे और भ्रष्टाचारियों को फायदा पहुंचे । विरोधी लाख ये कहे कि इनका कोई गुप्त एजेंडा है और ये तो आर एस एस के लोग है, तो लोगो को तो आर एस एस की तारीफ़ करनी चाहिए कि कम से कम उनके लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ तो बोल रहे है, लड़ रहे है । देश का भला देखना है तो लक्ष्य पर नजर रखिये और गौण चीजों को महत्व न दें । और चलते चलते एक छोटी सी नज्म ;
वृक्षों की झुरमुटों में, कुछ खौफ के साये नजर आ रहे है,
निकल ही गए जब घर से, अब ये न पूछो,कहाँ जा रहे है !
दब जायेगी इन तेवरों की गूँज, या लिखेगी नई इबारत,
देखना है, सज रही फूलों की सेज है, या अर्थी सजा रहे है !
न अगर राजा ही बेईमान है, न कोई दरवारी ही भ्रष्ट ,
देश-प्रजा से रूबरू होने में, फिर क्यों लजा रहे हैं !
बोलिएगा वो यूं एक साथ, कि शक की गुंजाइश न रहे ,
रणभूमि से भ्रष्टाचार के खात्मे का जो बिगुल बजा रहे है !
हम सबको एक मसीहा की तलाश रहती है जो खुद हर तरह की कुर्बानी करे और हमें चैन से रहने दे| यही तलाश हमें कभी अन्ना, कभी बाबा रामदेव और कभी दुसरे जन नायकों के पीछे खड़े होने में प्रेरक होती है|
ReplyDeleteयथा राजा तथा प्रजा..
ReplyDeleteअण्णा को लड़ते इतने साल हो गए पर आज जिस टीम को गालियां भी दिलाई जा रही हैं, उन्हीं के चलते आज पूरे देश में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ माहौल बना है वर्ना लोगों ने मान ही लिया था कि अब कुछ नहीं हो सकता
ReplyDeleteअन्ना के साथी संयम व संतुलन बनाये रख सके तो तभी देश का भला हो सकता है ..... वैसे कुछ लोग श्रेय लेने की ही नहीं अपितु आन्दोलन को हाइजैक करने की फ़िराक में होंगे।........ भगवान, अन्ना को इनसे बचाए रखे। ......
ReplyDeleteजय अन्ना ! जय भारत !!
भाई जी ! हुंकार बनाये रखें!
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
जोरदार हुंकार...बढ़िया तर्क।
ReplyDelete........इसमें कोई संदेह नहीं की स्वामी रामदेव हो या फिर टीम अन्ना अभी भी दोनों से ही देश को काफी उम्मीदें हैं लेकिन इन दोनों की गतिविधयां कभी -कभी गलत फहमियां और अविश्वास की खाई पैदा कर देती हैं जिसके फलस्वरूप आम आदमी का इन पर विस्वास किसी हद तक कम हुआ है. अन्ना द्वारा एक दलित एवं एक मुस्लिम बच्ची के हाथों जूस पीकर अनशन तोडना, अनशन स्थल से भारत माता की तस्वीर सिर्फ इसलिए हटा देना की उक्त तस्वीर से आर. एस.एस. की उपस्तिथि का अहसास होता है, अन्ना द्वारा कभी सोनिया कभी राहुल तो कभी प्रधान मंत्री को अधिक महत्त्व देना, ऐसा लगता है देश की वर्तमान हालातों के लिए ये लोग जरा भी कसूरवार नहीं है, वहीँ दूसरी ओर स्वामी रामदेव समानता की बात तो करते हैं लेकिन साथ में धर्म एवं जाती आधारित आरक्षण निति का भी समर्थन करते देखे गए है हैं, और व्यस्था परिवर्तन के लिए उन लोगों से समर्थन का आग्रह करते हैं जो स्वयं व्यस्थित नहीं हैं,...............
ReplyDeleteबहरहाल उपरोक्त सटीक प्रस्तुति हेतु आपका आभार व्यक्त करता हूँ..............
देश का भला देखना है तो लक्ष्य पर नजर रखिये और गौण चीजों को महत्व न दें... Great line Godiyal Sir....Very inspiring..
ReplyDelete.
सच कहा है आपने ... अन्ना कों सावधान रहना होगा ... ये सत्ताधारी उन्हें बरगलाने में लगे हैं ...
ReplyDeleteवृक्षों की झुरमुटों में, कुछ खौफ के साये नजर आ रहे है,
ReplyDeleteनिकल ही गए जब घर से, अब ये न पूछो,कहाँ जा रहे है !
दब जायेगी इन तेवरों की गूँज, या लिखेगी नई इबारत, देखना है,
सज रही फूलों की सेज है, या अर्थी सजा रहे है !
..bahut khoob!
.sateek samyik jagruktabhari prastuti..
अपने जितने प्रश्न उठाये हैं इस सरकार से पीड़ित हर भारतीय के मन से निकले लगते हैं... अन्ना और अन्ना टीम को सोचना होगा की जो बोले एक सुर में बोले क्योंकि सरकार में बैठे दुष्ट जरा सी असावधानी पर तुरही बजने लगते हैं...
ReplyDeleteअपराध को संरक्षण देने वाला भी अपराधी ही होता है... सो हमारे मोहन निर्दोष तो कतई नहीं हैं...
ईमानदार व्यक्ति ऐसे पद को कभी स्वीकार नहीं करेगा जिसे सम्भालने कि क्षमता उसमें न हो.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती