शान-ओ-शौकत के लिए, लूटने की इनकी लगन देखो,
दौलत दिखे जहाँ, झपटते है कैसे,होकर ये नगन देखो।
करतल लिए जपते हैं माला, नैतिकता एवं आदर्श की,
सहज हैं चेहरे मगर इनके शठ-दिलों की अगन देखो।
खुल जाए जो एक बार किस्मत किसी अंगूठा छाप की,
कुर्सी पे बैठ करता है मक्कार कैसे पटुता से गबन देखो।
लोकतंत्र को समझ लिया इन्होने, इक पुश्तैनी बपौती,
सिंहासन पे काबिज रहने की पीढ़ी दर पीढ़ी लगन देखो।
देश के खाली खलीतों से इनकी, और न खिदमत होगी,
धरा तो लूट खाई है हरामखोरों, अब जाकर गगन देखो।
खलीते=जेबें
चित्र गूगल साभार !
शेर एक से एक है, प्रगट करूँ आभार |
ReplyDeleteसावधान हे पाठकों, बेहद पैनी धार ||
सादर ||
सीधी सीधी .... खरी खरी बात ... बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteधरा लूट के यूँ धरा, धनहर धूम धड़ाक ।
ReplyDeleteसात समंदर पार कर, रहा आसमाँ ताक ।
रहा आसमाँ ताक , बसेगा अब मंगल पर ।
फितरत फिर नापाक, बड़ी है इसकी रविकर ।
शैतानी अरमान, बसाने को उद्दत सब ।
किया बड़ा नुक्सान, धरा पूरी आहत अब।
बहुत सही ग़ज़ल लगाई है आपने!
ReplyDeleteशान-ओ-शौकत के लिए, कैसी है जाकर लगन देखो,
ReplyDeleteदौलत के खातिर हो रहे ये, बिन लजाकर नगन देखो !
behatareen sher...abhar sir Tabiyat khush ho gai ...
आप हरामखोरों के पीछे पड़े रहते हैं भाई गोदियाल जी। क्या बात ?
ReplyDeletekya pata ye gagan me bhi chhed kar dale....badhiya kataksh
ReplyDeleteबेहतरीन है जी...
ReplyDeleteकुँवर जी.
गगन में छेद करने की सलाह तो दुष्यन्त कुमार दे ही चुके हैं।
ReplyDeleteएकदम खरा खरा कह दिया बहुत खूब
ReplyDeleteसही है . बहुत खरी खरी सुनाई है .
ReplyDeleteबिल्कुल ठीक!
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