Wednesday, June 27, 2012

अब जाकर गगन देखो !


शान-ओ-शौकत के लिए, लूटने की इनकी लगन देखो,  
दौलत दिखे जहाँ, झपटते है कैसे,होकर ये नगन देखो। 


करतल लिए जपते हैं माला, नैतिकता एवं आदर्श की, 
सहज हैं चेहरे मगर इनके शठ-दिलों की अगन देखो।     

खुल जाए जो एक बार किस्मत किसी अंगूठा छाप की, 
कुर्सी पे बैठ करता है मक्कार कैसे पटुता से गबन देखो।   

लोकतंत्र को समझ लिया इन्होने, इक पुश्तैनी बपौती,
सिंहासन पे काबिज रहने की पीढ़ी दर पीढ़ी लगन देखो।   

देश के खाली खलीतों से इनकी, और न खिदमत होगी, 
धरा तो लूट खाई है हरामखोरों, अब जाकर गगन देखो।   

खलीते=जेबें 
चित्र  गूगल साभार !

12 comments:

  1. शेर एक से एक है, प्रगट करूँ आभार |
    सावधान हे पाठकों, बेहद पैनी धार ||

    सादर ||

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  2. सीधी सीधी .... खरी खरी बात ... बढ़िया प्रस्तुति

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  3. धरा लूट के यूँ धरा, धनहर धूम धड़ाक ।

    सात समंदर पार कर, रहा आसमाँ ताक ।

    रहा आसमाँ ताक , बसेगा अब मंगल पर ।

    फितरत फिर नापाक, बड़ी है इसकी रविकर ।

    शैतानी अरमान, बसाने को उद्दत सब ।

    किया बड़ा नुक्सान, धरा पूरी आहत अब।

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  4. शान-ओ-शौकत के लिए, कैसी है जाकर लगन देखो,
    दौलत के खातिर हो रहे ये, बिन लजाकर नगन देखो !

    behatareen sher...abhar sir Tabiyat khush ho gai ...

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  5. आप हरामखोरों के पीछे पड़े रहते हैं भाई गोदियाल जी। क्या बात ?

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  6. kya pata ye gagan me bhi chhed kar dale....badhiya kataksh

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  7. बेहतरीन है जी...

    कुँवर जी.

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  8. गगन में छेद करने की सलाह तो दुष्यन्त कुमार दे ही चुके हैं।

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  9. एकदम खरा खरा कह दिया बहुत खूब

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  10. सही है . बहुत खरी खरी सुनाई है .

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  11. बिल्कुल ठीक!

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।