आखिरकार वही हुआ जिसका डर था। २० जून, २०१२ की रात करीब ग्यारह बजे दिल्ली के निकट हरियाणा के कासन की ढाणी नामक स्थान पर ७० फीट गहरे बोरवेल में गिरी माही को २४ जून को सेना, एनएसजी, और पुलिस के जाबाजों के अथक परिश्रम के बाद बाहर निकाल तो लिया गया, मगर उस रूप में नहीं जिस रूप में अपने जन्मदिन का केक काट नन्हे मन में फूली समाई,इठलाती हुई माही घर के बाहर गली में खेलते हुए, किलकारियां मारते हुए उस मकान मालिक द्वारा बिछाई गई मौत की सुरंग में घुस गई थी, जिसके मकान मे उसके माँ-बाप किराये पर रहते है l
बोरवेल में फंसी नन्ही जान की सलामती के लिए हर करने वालों ने अपना काम किया l तमाशबीनो ने तमाशा देखा,मौके पर जमा लोगों की नजर उस सुरंग पर जमी रही जिसमे माही गिरी थी l प्रशासन ने घडियाली आंसू बहाए, दुआ मांगने वालों ने दुआओं और हवनो का दौर जारी रखा। अन्धविश्वासी लोग शहर से लेकर गांव तक पूजा-अर्चना कर माही की सकुशल वापसी के लिए प्रार्थना करते रहे। अमूमन मौके का फायदा उठाने वालों ने यहाँ भी कोई चूक नहीं कीl माही की मौत से इस देश का सुप्त प्रशासन कितना जागता है, यह कहना तो फिलहाल अँधेरे में तीर चलाने जैसा है, मगर नन्ही माही की मौत के बाद, कुछ दिनों तक इस देश के हर शहर गाँव और कस्बे का हर छोटा-बड़ा गड्ढा और सीवर के खुले मैनहोल यहाँ के निवासियों को मुह-चिढाते से जरूर नजर आयेंगे और फिर जब इस देश के अल्प-स्मृति के लोग सब कुछ भुला बैठेंगे तो ये गड्ढे, मेनहोल और बोरवेल फिर अपने एक नये शिकार की तलाश में जुट जायेंगे।
पिछले करीब सात सालों से, जबसे हमारे इस तेज-तर्रार मीडिया, जिसे सिर्फ मैडम और युवराज के विदेशी ठिकानों की जानकारी न होने के अलावा बाकी धरती, आकाश और पाताल, तीनो लोको के कोनो -कोनो से हर खबर को ढूढ़ लाने की महारत हासिल है, द्वारा इन बोरवेलीय हादसों की विस्तृत लाइव रिपोर्टे प्रस्तुत की जाने लगी है, उसे देखकर इतना अहसास तो होता ही है कि तीन क्या दस-दस गुलामियाँ भी अगर हम हिन्दुस्तानी झेल लें, तब भी हम नहीं सुधर सकते है। बहुत ही नायब किस्म की चमड़ी और बुद्धि के बने इंसान हैं हम, जिस पर चढी लापरवाही और बेशर्मी की अटूट परत मानवीय संवेदनशीलताओं को इंसान के अन्दर घुसने से रोकती है।
अभी कुछ हफ़्तों पहले एक आस्ट्रेलियाई साईट पर एक खबर पढ़ रहा था। संक्षेप में खबर यह थी कि आज से करीब ३२ साल पहले १९८० में लिंडी चैम्बरलेन और उसके पति माइकेल अपनी दो माह की बच्ची अजारिया के साथ वहाँ के एक पिकनिक स्पोट 'एर्स रॉक ' पर टेंट लगाकर अपनी छुट्टियों का आनंद ले रहे थे कि तभी कैम्प वाली जगह से अचानक डिंगो ( आस्ट्रेलियाई जंगली कुत्ता ) ने हमलाकर उस नन्ही जान को उठा ले गया और अपना ग्रास बना लिया । यह घटना ऐसी थी जिसका कोई चश्मदीद नहीं था और इस घटना के बाद जब टीवी पर वह खबर दिखाई गई और अजारिया के माता पिता को दिखाया गया तो सिर्फ इस आधार पर आस्ट्रेलियाई लोगो का इन पर शक होने लगा कि इन्होने खुद अपनी उस नन्ही जान को मार डाला, क्योंकि टीवी पर साक्षात्कार देते वक्त यह जोड़ा सहज नजर आ रहा था, उनके चेहरों पर वहाँ के नागरिकों को कोई शिकन नजर नहीं आ रही थी। अत: इन पर मुकदमा दायर कर दिया गया। लिंडी को आजीवन कारावास के तौर पर तीन साल जेल में बिताने पड़े। लिंडी रातो को चिल्लाती रही कि ‘A dingo’s got my baby !’, मगर उसकी किसी ने एक न सुनी। बाद में (१९८६ में ) उस चट्टान की तलहटी में डिंगो के छुपने के स्थान पर से उस बच्ची के कपडे मिले थे, जिसके आधार पर लिंडी को जेल से रिहा कर दिया गया था। यह सबूत भी एक रोचक अंदाज में मिले थे जब १९८६ में एक अंग्रेज पर्वतारोही डेविड ब्रेट इस चट्टान पर चढ़ने के प्रयास में फिसलकर गिर मरा और गिरकर जहां पर वह अटका ठीक उसी स्थान पर उसे निकालने गए बचाव दल को नन्ही अजारिया के कपडे मिले थे। आखिरकार गत माह कोर्ट ने उन्हें यह कहकर बरी कर दिया कि नन्ही अजारिया को डिंगो ही उठाकर ले गया था। कोर्ट के फैसले के बाद अब ६३ वर्षीय लिंडी सिर्फ कोर्ट को थैंक्यू- थैंक्यू ही बोलती रह गई। विस्तृत खबर आप यहाँ भी देख सकते हैं।
इस वाकिये को सुनाने का मेरा तात्पर्य यह था कि आस्ट्रेलिया की एक माँ जो निर्दोष होते हुए भी ३२ सालों तक यह दंश झेलती रही वह सिर्फ इसलिए कि उसने अपनी नन्ही बेटी को टेंट में थोड़ी देर के लिए अकेला रख छोड़ा था। और दूसरी तरफ ये भारतीय माता पिता है जो ग्यारह बजे रात भी बच्चे को गली में छोड़ देते है, और फिर हमारे तेज-तर्रार मीडिया के समक्ष बजाये अपनी लापरवाही, अपना दोष कबूल करने के, इस दुखद घटना का सारा दोष व्यवस्था के सिर मढने में ज़रा भी नहीं चूकते।
ताकि यह सजा लोगो के लिए एक सबक पेश कर सके, क्या ही अच्छा होता कि क़ानून माही की मौत की जिम्मेदारी माही के माता-पिता पर डालता, क्या ही अच्छा होता कि जो व्यक्ति उस बोरवेल को खुला छोड़ने के लिए जिम्मेदार है, उसे पकड़कर कुछ समय के लिए उसे उल्टा लटकाकर बचाव के लिए खोदे गए समानांतर गड्डे में डाल दिया जाता ताकि उसे अहसास हो सके कि गड्डे में गिरी माही ने जीते जी क्या कष्ट झेला होगा, जो उसे बचाने उस समानांतर गड्डे में उतरा होगा उसने कितने साहस का परिचय दिया और किस मानसिक तनाव को झेला होगा।
जिस तरह से एक पर एक ये घटनाएं घटती रहती है, उससे यह बात तो साफ़ है कि हम भले ही जितने मर्जी बड़े-बड़े दावे कर ले, जहां तक बुनियादी सुरक्षा मानकों को लागू करने का सवाल है, हमारी मानसिकता, हमारी सोच, हमारा सामाजिक और आर्थिक तानाबाना अभी भी तीसरी दुनिया के देशों से बदतर है। यहाँ मानव-जीवन और मानवीय मूल्यों की कोई कीमत नहीं है। लोग अगर इस तरह क़ानून की भावना की उपेक्षा करने पर उतर आयें तो दुनिया की कोई भी सरकार उसे लागू नहीं कर सकती। पश्चिम की दुनिया इसीलिए हमारे से बेहतर है, क्योंकि वे लोग अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी को बखूबी समझते है।
छवि नेट से साभार !
छवि नेट से साभार !
दुखद मार्मिक कष्टप्रद, दुर्घटना गंभीर |
ReplyDeleteपूँछों उन माँ बाप से, असहनीय यह पीर |
असहनीय यह पीर, चीर कर डिंगो खाए |
भोगी जोड़ी जेल, अंत निर्दोष कहाए |
यहाँ बोरवेल साल, गिराता रहता बच्चा |
रहे खोद के डाल, दे रहे दोषी गच्चा ||
बहुत ही दुखद घटना है, यकीनन बोरवेल खुदवाने वाले लापरवाह मकान मालिक को तो सख्त सजा मिलनी ही चाहिए....
ReplyDeleteगोदियाल जी , जितनी आबादी ऑस्ट्रेलिया की है , उतने तो हम एक साल में पैदा कर देते हैं .
ReplyDeleteहैरानी इस बात की है की ऐसे केस पहले भी होते होंगे लेकिन अब २४ घंटे चलने वाले टी वी चैनल्स की वज़ह से एक तमाशा ज़रूर बन जाता है .
यहाँ शहर में ही कितने ही मेनहोल खुले पड़े रहते हैं जिसमे कोई भी गिर सकता है .
जिम्मेदारी तो फिक्स करनी चाहिए .
दुखद घटना ..... माही की मौत के जिम्मेदार माता - पिता के साथ आम नागरिक की लापरवाही भी है और साथ में प्रशासन की तो है ही ...
ReplyDeleteअफ़सोस, दुबारा ऐसा नहीं होगा, बस हम दुआ ही कर सकते हैं...
ReplyDeleteबहुत ही दुख:द.. ईश्वर उसकी आत्मा को शान्ति दे.
ReplyDeleteउस नन्ही मासूम के गुनाहगार समाज, प्रशासन व खुद उसके माता-पिता भी हैं. कोई भी अपनी जवावदेही से नहीं बच सकता.
गुस्सा तो बहुत आता है पर समझ नहीं आता क्या करें ... मीडिया कों भी और सरकार और सभी को कुछ होने के बाद ही जागने की जरूरत पड़ती है पर वो भी ३-४ दिन ... जब तक लोग भूल न जाएँ ..
ReplyDeleteबहुत दुखद है...........
ReplyDeleteमगर जाने ये सिलसिला कभी थमेगा भी????
अपनी लापरवाहियों से सबक क्यूँ नहीं लेते लोग????
सादर
अनु
बहुत ही दुखद घटना... जो भी जिम्मेदार हैं उनके खिलाफ कार्यवाई होनी चाहिए...
ReplyDeleteजिन्हें समझना चाहिये, काश उन्हें यह पीड़ा समझ आये..
ReplyDeleteआज की सच्चाई से रूबरू कराती पोस्ट रचना आभार
ReplyDeleteबढ़िया लेख
ReplyDeleteबहुत ही दुखद वाकया है ...इतनी घटनाएँ होने के बावजूद शासन प्रशासन के साथ लोग बाग़ सतर्क नहीं हैं ...खुले बोर मालिकों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की जनि चाहिए .. आभार
ReplyDeleteमेरा भी यही मानना है की हर बात पर प्रशासन या फिर सरकार को कोशना अथवा निर्भर रहना उचित नहीं होगा, कही-न-कही आम नागरिक भी हर घटना या दुर्घटना के लिए जिम्मेदार होता है........बहरहाल माहि की दिवंगत आत्मा के की शांति के लिए सिर्फ प्रार्थना ही की जा सकती है......
ReplyDeleteकरीब बीस साल पहले की बात है . तब हमने मयूर विहार में नया नया घर लिया था . एक शाम को एक बुजुर्ग दंपत्ति डिनर के बाद टहलने निकले . सड़क पर अँधेरा था . अचानक पति ने पीछे घूमकर देखा तो पत्नी को नदारद पाया . पता चला वो चुपके से एक खुले मेनहोल में समा गई थी .
ReplyDeleteदुखद घटना ...
ReplyDeleteआखिर हम कब सबक लेंगे
कितने माही और ....
दुखद घटना ... पर आपके उठाए मुद्दे वाजिब है !
ReplyDeleteआपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है आपातकाल और हम... ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
भारत में इस तरह का सबसे पहला चर्चित मामला 'प्रिंस' का हुआ था और उसके बाद उस बालक पर सरकारी गैर सरकारी ईनामों की बौछार हो गई थी| बच्चे के सकुशल बचने पर अपने को भी बहुत खुशी हुई थी लेकिन उसके बाद जिस तरह से ईनाम बरसने शुरू हुए उनकी कोई तुक नहीं समझ आई और यार दोस्तों के बीच ऐसी बात कहते ही 'एंटी गरीब' होने का ताना सुनने को मिला|
ReplyDeleteहम लोग अपनी हर बात के लिए दूसरों को कोसना शुरू कर देते हैं, अधिकारों के प्रति कुछ ज्यादा ही जागरूकता और कर्तव्यों के प्रति बहुत ज्यादा उदासीनता ही शायद इसकी वजह है| ऐसे मामलों में दोषी को सजा मिलनी चाहिए और दोबारा ऐसी घटनाएं न हों, ऐसे इंतजाम और सावधानियां बरती जानी चाहिए| फिर भी २४ घंटे मीडिया का सकारात्मक प्रभाव ही ऐसे मामलों में देखने को मिलता है जोकि अन्यथा दुर्लभ है वरना ऐसी घटनाएं पहले भी होती रही हैं लेकिन इन पर प्रशासन का फोकस नहीं होता था, अब कम से कम जनता की भावनाओं के चलते कुछ तो हो ही रहा है|
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बढ़िया लेख
ReplyDeleteपश्चिम की दुनिया इसीलिए हमारे से बेहतर है, क्योंकि वे लोग अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी को बखूबी समझते है।
ReplyDeleteAbsolutely correct.
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This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteA lot of energy, time and resources are wasted due to negligence.
ReplyDeleteसंगीता स्वरुप ( गीत ) जी के विचार से मैं पूर्णतः सहमत हूं कि ....माही की मौत के जिम्मेदार माता - पिता के साथ आम नागरिक की लापरवाही भी है और साथ में प्रशासन की तो है ही ...
ReplyDeleteबहुत दुर्भाग्यपूर्ण घटना!
ReplyDeleteआगे ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। यही कामना है।
संजय @ मो सम कौन से सहमत हूँ। और भी कई बातें हैं जिनके लिये टिप्पणी बॉक्स ज़रा छोटा है।
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