Saturday, June 23, 2012

खलीतों पर भारी पड़ रहा, इन गजराजों को पालना,

स्वयं स्तुति और संतुष्टि पहुँची जब सदयता निभाने, 
इक मर चुके रेपिस्ट की भी जान बख्श दी प्रतिभा ने ! 
जाने जा किधर रहा है, अरुण मधुमय यह देश हमारा,    
कर दिया इसे पराभूत, एक बुझती शिखा की विभा ने !
आमजन का उठ गया है इस व्यवस्था पर से भरोसा,   
शठ-स्तवन शुरू  किया जबसे, कुटिलों की जिब्हा ने ! 
खलीतों पर भारी पड़ रहा,  इन गजराजों को पालना,   
की सैर भी करोड़ों   की 'परचेत', एक अकेली इभा ने



5 comments:

  1. कहाँ पंगा ले रहे हो गोदियाल जी? :)

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  2. आज पाटिल के प्रतिभावान कारनामे पढ़कर मन व्यथित हुआ... लगा की हद है यार. किसी की नन्ही सी बेटी के साथ दुराचार किया उस अपराधी को माफ़ी देने का हक किसे है?
    एक ही परिवार के १०-१० लोगों की हत्या करने वाले को माफ़ी देने का हक किसे है और क्यों है?

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  3. आमजन का उठ गया है इस व्यवस्था पर से भरोसा,

    ये भरोसा तो कब का उठ चुका है ... पर वोट के अलावा कुछ हाथ में नहीं है आम आदमी के ... और वोट कों वो बेचारा इस्तेमाल करे या भूखा प्रेत भरने के लिए बेच दे ...

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  4. यही सब पुनः घृणित वातावरण निर्माण करेंगे।

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।