...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
Tuesday, July 31, 2012
Friday, July 27, 2012
पिरोयें कहाँ तक अल्फाजों में !
किसकदर बेहयाई भरी ऐ खुदा, तुमने इन दगाबाजों में,
मेज़ तले ये मसलते हैं हाथ और झाड़-पोंछते दराजों में।
फल-फूलता आ रहा है यह तिजारत, बदस्तूर जमाने से,
कहीं पोसते हैं इसे ये संत-समागमों में, कहीं नमाज़ों में।
दौलत-वैभव,ढोंग,धौंसिया,ये प्रयोजन इनकी तृष्णा का,
इशारों-इशारों में राग छेड़ते और बोल ढालते हैं साजों में।
दरियादिली-परोपकार की, माशाल्लाह क्या मिशाल दें,
गोश्त अलगाते कबूतरों को और दाना बांटते है बाजों में।
जेहन में सिर्फ वोट बसा है और खोट बसा है नीयत में,
मुलामियत ओढ़े चहरे पे और कुटिलता काम-काजों में।
तख़्त-ए-रियासत तजुर्बाकार है शख्सियत के खेल में,
जालिमों की करतूतों को,पिरोंए कहाँ तक अल्फाजों में।
Saturday, July 21, 2012
Tuesday, July 17, 2012
Wednesday, July 4, 2012
'ॐ' हिग्ग्स-बोसोन भी कहे - कण-कण में भगवान् !
मेरे लिए तो ये हिग्ग्स-बोसोन एक काला अक्षर भैंस बराबर के समान है ! जब जिसका कुछ ख़ास पता ही नहीं तो मेरा उस बारे में कुछ कहने का तुक ही नहीं बनता किन्तु जहां थोड़ी खुशी हुई कि इन ज्ञानियों ने कुछ ढूंढा वहीं मुझे इस बात का दुःख अधिक है कि अरबों-खरबों खर्च करने के बाद यदि हमारे ये वैज्ञानिक अब यह कहें कि कोई शक्ति है जो बिग-बैंग थ्योरी से ज़रा पहले घटित हुई और जो ब्रह्माण्ड को नियंत्रित और संचालित करती है, तो मेरे लिए इससे बड़ी हास्यास्पद बात क्या हो सकती है? पश्चिम और तथाकथित अतिज्ञानी, नास्तिक समाज का दोगलापन भी इसमें साफ़ झलकता है! यह जानने के बाद भी कि आस्तिकता के पीछे भी ठोस कारण है, और इसे हम बहुत अधिक समय तक झुठला नहीं सकते, उसे स्वीकार करने हेतु इनके द्वारा इतने ताम-झाम करने के बाद ऐसे निष्कर्ष निकाले जाते है! एक दुःख यह भी है कि हिग्ग्स बोसोन का जिक्र करते हुए ये पीटर हिग्स को तो याद रखते है, मगर हमारे वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस को भूल जाते है ! जिन निष्कर्षों पर पहुचने का नाटक ये आज कर रहे है, उन निष्कर्षों को तो हमारे पौराणिक ग्रंथ कब के बता चुके, अब ये इसे भले ही इस अंदाज में प्रस्तुत करे कि पहले कणों का कोई पिंड, पुंज, पैमाना अथवा समूह नहीं होता था लेकिन अब इस हिग्ग्स बोसोन के मिल जाने के बाद इन्हें वह कण भी मिल जाएगा जिसमे ये खूबियाँ हों! इसे कहते हैं खोदी सुरंग निकली चुहिया !
आइये, अब ज़रा इसे दूसरे नजरिये से देखकर हम भगवद गीता के १३ वे अध्याय के १३वें व १५ वे श्लोक पर एक नजर डाले ;
सर्वतः श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति ॥१३- १३॥
हिन्दी सारांश: वह (भगवान्) सब और(दिशा में ) हाथ,पैर, नेत्र, सिर, मुख और कान वाला है !क्योंकि वह संसार में सबको व्याप्त करके स्थित है अर्थात वह संसार के कण-कण में मौजूद है! (English translation: It has hands and feet all sides,eyes, head and mouth in all directions, and ears all-round; for it stands pervading all in the universe.)
सूक्ष्मत्वात्तदविज्ञेयं दूरस्थं चान्तिके च तत् ॥१३- १५॥
थोड़ी देर के लिए मान लीजिये कि कल इस हिग्ग्स बोसोन पर आगे प्रयोग होते है और यदि एक दिन वैज्ञानिक विरादरी इस बात पर पूरी तरह एकमत हो जाती है कि हमारे आसपास कोई है जो सबकुछ नियंत्रित और संचालित कर रहा है, तो थोड़े से ठन्डे दिमाग से सोचिये कि हमारा यह हिन्दू धर्म और इसके पौराणिक ग्रंथ वाकई कितने श्रेष्ठ है, जिसने उस बात को हमें सदियों पहले बता दिया था. जिसे ये पश्चिम के वैज्ञानिक आज साबित करने जा रहे है!
नोट: उपरोक्त आलेख सिर्फ इस बिंदु को ध्यान में रखकर लिखा गया है कि जैसा कि हमारे कुछ प्रचार माध्यम प्रचारित कर रहे है, कि भगवान् की खोज हो गई है, तो यदि भगवान् है तो यह बात ऋषि-मुनियों ने हमारे धर्म- ग्रंथों में बहुत पहले ही कह दी थी, इसमें नया क्या है ? बहुत सीमित विज्ञान की जानकारी रखता हूँ, अत : जाने अनजाने कुछ गलत परिभाषित किया हो तो उसके लिए अग्रिम क्षमा !
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