...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
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जस दृष्टि, तस सृष्टि !
धर्म सृष्टा हो समर्पित, कर्म ही सृष्टि हो, नज़रों में रखिए मगर, दृष्टि अंतर्दृष्टि हो, ऐब हमको बहुतेरे दिख जाएंगे दूसरों के, क्या फायदा, चि...
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नोट: फिलहाल टिप्पणी सुविधा मौजूद है! मुझे किसी धर्म विशेष पर उंगली उठाने का शौक तो नहीं था, मगर क्या करे, इन्होने उकसा दिया और मजबूर कर द...
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बेशर्मों को शर्म कहां आई है ... सटीक निशाना ...
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteआइये-
सादर ।।
आदरणीय पाठक गण !!
किसी भी लिंक पर टिप्पणी करें ।
सम्बंधित पोस्ट पर ही उसे पेस्ट कर दिया जायेगा 11 AM पर-
वाह ..
ReplyDeleteएक नजर समग्र गत्यात्मक ज्योतिष पर भी डालें
आती है उनको शर्म
ReplyDeleteपर वो दिखाते नहीं हैं
जाती है जब उनकी
शर्म बताती नहीं हैं !!
बहुत खूब !!!
कम शरमाना भी घोटाला ही है।
ReplyDeleteये शर्म क्या होती है?
ReplyDeleteरामराम.
[co="red"]ताऊ जी , आज के परिपेक्ष में काफी जटिल सवाल आपने पूछा है ! नेट पर सर्च करता हूँ, कहीं मुकम्मल जबाब मिला तो दूंगा :)[co/]
ReplyDelete:)))
ReplyDeleteशर्म क्या चीज़ होती है...
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