Wednesday, October 31, 2012

सैंडी- विनाशकारी चक्रवाती महातूफान: एक अभिशाप जो बन सकता है वरदान !


जल,थल,और नभ जीतने के बड़े-बड़े दावे करने वाला इक्कीसवीं सदी का इंसान एक बार फिर कुदरत के आगे असहाय दिखा। जैसा की आप भी कुछ दिनों से तमाम खबरिया माध्यमो  के जरिये  यह देख, सुन रहे होंगे कि  कैरेबियाई समुद्र क्षेत्र से उठा चक्रवाती तूफान सैंडी, दुनिया के एक साधन  सम्पन्न और सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में किस तरह अपनी विनाशलीला का कहर बरपा रहा है। जन-धन की अपार क्षति से समूचा अमेरिका सिहर उठा है। उसके न्यूयार्क जैसे प्रमुख तटीय शहरों  के तमाम बुनियादी ढांचों को समुद्र का खारा नमकीन पानी अपनी आगोस में ले चुका है, जोकि आगे चलकर निश्चित तौर पर उसकी गुणवता को काफी हद तक प्रभावित करने और नुकशान पहुंचाने वाला है। अमरीका के दक्षिणी न्यूजर्सी और पूर्वी तटीय क्षेत्रों में मूसलाधार बारिश और भयंकर तेज हवाओं ने कहर बरपा दिया है, वहाँ  समूचा बुनियादी ढाचा चरमरा सा गया है। इस भीषण तूफान के कारण कई इलाकों में पेड़ जड़ों से उखड़ गए, यातायात व्यवस्था चरमरा गई, दो दिनों से विद्युत आपूर्ति ठप्प है, व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद है, करीब १३००० उड़ाने रद्द हो चुकी है और कम से कम 50 से अधिक लोगों के मारे जाने की बात कही जा रही है। कई लोग अभी लापता भी हैं। १२ से ज्यादा राज्यों में आपात स्थिति की घोषणा कर दी गई है। तूफान से करीब ५  करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं। नुक्शान का अंदाजा लगाने वाली एक कंपनी ई.क्यू.ई.सी.ए.टी. के मुताबिक तूफान से अब तक करीब 50 अरब डॉलर का आर्थिक नुक्शान हो सकता है।

खैर, कुदरत के आगे आजतक न किसी की चली और ना ही मुझे लगता है कि आगे भी चल पायेगी  पिछले साल मार्च २०११  में हमने जापान की सूनामी विनाशलीला भी देखी और पिछले कुछ सालों से अपने देश में भी यत्र-तत्र, छोटी-बड़े अनेकों ऐसे कुदरती  कहर हम देखते चले आ रहे है। भगवान से बस यही दुआ करते है कि वह प्रभावित लोगो और उनके परिजनों को इस पीड़ा को सहने की क्षमता दे  

अब रुख करते है एक दूसरे पहलू की और मेरा भी काफी हद तक यह मानना है कि सुख और दुःख, प्रगति और विनाश एक दूसरे के पूरक है, बशर्ते कि सुख को दुःख का  और प्रगति को विनाश का पूरक बनाने हेतु सही समय पर उचित कदम उठाये जाएँ जापान हमारे सामने इस बात की एक जीती-जागती मिशाल है कि किस तरह यह देश प्रकृति और मानव-निर्मित आपदाओं से लगातार धराशाही होता आया है और फिर दुनिया के समक्ष अपने पैरों पर मजबूती से उठ खडा हुआ है इसी तरह अमेरिका न सिर्फ सामरिक दृष्ठि से ही विश्व की एक श्रेष्ठ हस्ती है अपितु एक विशिष्ठ साधन-संपन्न देश भी है। और  इस महातूफान से उसे जो भी नुकशान पहुंचा है, उससे तुरंत उभर आने की उसमे पूर्ण क्षमता विद्यमान है।वहाँ शीघ्र ही राष्ट्रपति चुनाव होने वाले है और उसमे जो भी प्रत्याशी चुनकर आयेगा उसके हाथों में अगले चार सालों में उस  देश का भाग्य लिखने की कलम मौजूद रहेगी  

जैसा कि मैंने पहले कहा, अभी इस चक्रवाती महा-तूफ़ान सैंडी से अमेरिका को बुनियादी तौर पर जो भी नुकशान हुआ है, उसकी भरपाई के लिए उसे फिर से अपने बुनियादी ढाँचे को दुरस्त कर पूर्वावस्था में लाने  और उसे उससे भी अधिक उन्नत बनाने हेतु सूई से लेकर सब्बल तक हर छोटी बड़ी वस्तु  की आवश्यकत पड़ेगी परिणाम स्वरुप, आगे के वक्त में यदि अमेरिकी नेतृत्व  समझदारी से उचित कदम उठाता है  तो  न सिर्फ मंदी की मार झेल रहे वहाँ के उद्योगों बल्कि तमाम दुनिया के उद्योगों और निर्यातको को इससे एक नई ऊर्जा मिलेगी। रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे और मैं पहले कह चुका कि अमेरिका के पास इससे उभरने की पूरी क्षमता मौजूद है हाँ, सामरिक हितों के लिए अनावश्यक और आवश्यकता से अधिक सैन्य खर्चों में अवश्य उसे कमी लानी होगी और सामरिक उद्देश्यों और आंतरिक विकास में एक उचित संतुलन बनाकर वह देश  एक नई प्रगति की राह खोल सकता है      

जहां तक अपने इस देश का सवाल है तो यहाँ भी चेन्नई के दक्षिण पूर्व समुद्र में करीब 500 किमी में बना विक्षोभ तूफान में तब्दील हो गया है। इस तूफान की तमिलनाडु के नागपत्तनम और आन्ध्र के नेल्लोर क्षेत्र के बीच बुधवार को पहुंचने की संभावना है। लेकिन यहाँ जो आज का राजनैतिक और प्रशासनिक माहौल है, उसे देखते हुए हम सब मिलकर भगवान से बस यही दुआ करें कि हे प्रभो !  यहाँ, यह तूफ़ान जन-धन का  कोई नुकशान न पहुंचाने पाए, वरना इस तथाकथित लोकतंत्र के मंदिरों में बैठे गिद्धों की तो मौज ही आ जायेगी  





12 comments:

  1. जापान की तरह " सैंडी "( संदीप ) के कहर से अमेरिका भी जल्दी उबर लेगा, लेकिन यहाँ जो मैडम "नीलम " की आहट सुनाई दे रही है उसका मुकाबला करने को हम कितने तैयार बैठे हैं यह देखने वाली बात होगी........

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  2. सटीक कहा भाकुनी साहब आपने, जाने क्या गुल खिलाये ये संदीप-नीलम की जोड़ी :)

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  3. सही आकलन किया है

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  4. सदा से प्रकृति से लडते ही आ रहे हैं हम ..
    इसका रहस्‍य कौन समझ पाया आज तक ??

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  5. ध्वनि प्रतिध्वनि | प्रकृति की घटिका (घडी) समजने में कठिन होते हुए भी कितनी सरल है ! अगर विज्ञान को माने और बस थोडा सा ही तत्वक्षेत्र में झांकी करे तो घूम फिर कर कहीं ना कही मनुष्य के लिए स्वयं कर्तव्य का महत्त्व कितना बढ़ जाता है, उदाहरण के तौर पर 'जैसी करनी वैसी भरनी', अब कर्म का नियम और प्रकृति की घटिका कुछ ख़ास समीकरण और अपने खुद के टाइम टेबल पर चलते ही है, मानव ने मिटटी की काया पर अभिमान किया और ना जाने क्या क्या जो नाशवंत है उस पर अधिकार किया, और बस आगे बढ़ता ही गया | लेकिन भाई विज्ञान को तो ना भूलिए? फिर भी, अभी भी यह एक वोर्निंग मात्र है | समय सबका आता ही है, उचित समय, हर एक ध्वनि के उत्तर और प्रतिध्वनि का है | विश्वास रखिये | सात्विक प्रज्ञा, सकारात्मक सुख (जिसमे कठिनता और पुरुषार्थ - और व्यवहारु जागृति अधिक है) और एक ख़ास वातावरण का उपार्जन से फिर भी हमें आगे बढ़ते ही रहना होगा |

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  6. प्रकृति के साथ खिलवाड़ होगी तो यही सब होगा!

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  7. सही कहा . अमेरिका जापान तो फिर संभल जायेंगे.
    लेकिन यहाँ आया तो हम कहाँ जायेंगे !
    यहाँ तो समुद्र का पानी नमकीन नहीं , कड़वा ही हो जायेगा.

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  8. यहाँ तो कुछ लोग यह दुआ मनायेंगे कि जल्दी से आये और कमीशन मिले, घोटाला हो.

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  9. सही कहा आपने.. भगवन करे ये ज्यादा नुकसान ना पहुंचाए।
    अंतिम में बहुत बढ़िया कटाक्ष.

    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं।
    http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post.html

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  10. नीलम नीलम,
    सकलं गीलम्

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  11. hummmm ... अच्छी हिंदी लिखी है आपने ...

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  12. हाँ फिर से खड़ा हो गया है अमरीका .हैलोवीन मनाया है उसने धूम धाम से 31 अक्टूबर शाम को ,मांगी है बच्चों ने कैंडी उसी भाव से जैसे हम लोहड़ी मांगते हैं -होली मांगे उपला (होला )दिवाली मांगे तेल ,दे तो दे नहीं

    नाय कर दे .

    बहुत सटीक विश्लेषण परचेत साहब .आपने हमारे ब्लॉग पे आके शिरकत की अच्छा लगा .

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।