Thursday, November 1, 2012

एक चुटकी- लोकतंत्र की सैर !


लोकतंत्र की सैर को, 
सांझ ढले चौक पर, 
देखने जो मैं गया, 
एक ही रंग में रंगे 
पेशेवर सारे भिखमंगे नजर आये, 
लूटकर तमाम
वतन का सरकारी खजाना, 
धन्ना-सेठ बनकर  घूमते, 
डाकू-चोर, लुच्चे-लफंगे नजर आये !
भ्रष्टाचार के हमाम पर 
दौड़ाई जो एक नजर, 
ससुराली तो माशाल्लाह, 
साले, जीजा सब के सब नंगे नजर आये !! 



11 comments:

  1. सब एक हमाम में ही तो बैठे हैं.

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  2. दिल्ली में धन-पेड़ है, चिकना सीध सपाट ।
    चढ़ते हैं उद्योगपति, जोहें रक्षक बाट ।
    जोहें रक्षक बाट, चार ठो चोर-किंवाड़ा ।
    न्याय, व्यवस्था, कार्य, मीडिया कार्य बिगाड़ा ।
    लूटा मक्खन ढेर, किन्तु बँटवाती बिल्ली ।
    साईं सबका भला, दूर जनता की दिल्ली ।।

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  3. भ्रष्ट सरकार का भ्रष्ट लोकतंत्र है-सटीक सैर करवाई है !

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  4. भाई जी ,आप का आना और आपको पदना हमेशा ही सुखद रहा है ..
    काश! आपके आज के लिखे व्यंग की व्यथा को भी
    हम सब समझे ....
    शुभकामनाएँ!

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  5. चुन चुन कर हमने ही उनको जो भेजे थे वहाँ,
    और उन्होंने भी चुन चुन कर मत बटोरे कहाँ से कहाँ,
    आलम आज यह है, चुन चुन कर हम मारे दौड़े फिरते,
    भीतर की रेला ठेली अब हुजुर बाद में भी देख लेंगे,
    पकड़ने को उनको बाहरी रेले में बहुत तेज़ धकेले जा रहे है,
    अवकाश एक छोटा सा मिल जाए, अधिकार तो बना ही रहेगा,
    धोती पहना गाँधी कह गया, नागरिक का कर्त्तव्य ही रक्षा करें अधिकार की,
    रक्षा करे लोकतंत्र की |
    कभी जरा यह भी सोच लेंगे |
    और फिर बगल में खड़ा लोकतंत्र मित्र बनकर कहेगा एक बार जरुर,
    कही तो बहुत अच्छी मेरे भाई,
    लगता है मेरे अच्छे दिन अब दूर नहीं...

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  6. बहुत बढ़िया!
    करवाचौथ की अग्रिम शुभकामनाएँ!

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  8. न जाने किस दिशा जा रहा है देश..

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  9. इतना रोष !
    कभी चुनाव नहीं लड़ना क्या ? :)

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  10. बढ़िया तंज है परचेत साहब .आपको प्यार छुपाने की बुरी आदत है ,और हमें प्यार जताने की बुरी आदत है ......आप अपनी वृत्ति में रहो केकड़े की तरह हम अपनी में रहते हैं .सपेरा बनके .

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  11. बढ़िया तंज है परचेत साहब .आपको प्यार छुपाने की बुरी आदत है ,और हमें प्यार जताने की बुरी आदत है ......आप अपनी वृत्ति में रहो केकड़े की तरह हम अपनी में रहते हैं .सपेरा बनके .आओ दामादों के मार्फ़त ही सही दोस्ती का नाता जोड़ें .

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।