Monday, November 19, 2012

नसीहत उल्टी पडी या फिर ...........OMG !!

मैंने आज से  तीन साल पहले उत्तम प्रदेश में खुलेआम हो रहे एक अन्याय पर एक छोटी सी पोस्ट लिखी थी;  "डूब मरो बेव्डो कहीं चुल्लू भर दारू मे ! "   और इसके केंद्र बिंदु में  बताया जाता है कि  चड्ढा जी ही थे। और अब उनका यह सारा साम्राज्य  यही छूट गया। उनको श्र्द्धान्जली स्वरुप अपनी उस पोस्ट का लिंक  यहाँ लगा रहा हूँ, पढियेगा जरूर  ;  "डूब मरो बेव्डो कहीं चुल्लू भर दारू मे ! "

इन बेवडो के लिए एक अंगरेजी लेख का लिंक भी दे रहा हूँ एक अच्छा लेख है, अगर मदहोशी  की अवस्था से बाहर निकल आने की फुर्सत मिले तो इसे  भी पढ़ना  ; 

8 comments:

  1. हुंकार ऊपर वाले की जब सरे आम आती है ,
    न दवा, न दुआ, न दवा दारू काम आती है .

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  2. सोमरस उत्पादन (खुदरा अथवा थोक, बाजारू अन्यथा घरेलु) और मद्यपान मानव - सजीव सभ्यता और भारतीय संस्कृति में कभी वर्ज्य नहीं रहे, पाकशास्त्र, जलवायु और देशकाल के अनुरूप-परिपेक्ष में उसका अपवादरूप नियमित प्रचलन, अन्य प्रसंगों में प्रासंगिक प्रतीकात्मक उपभोग और कई बार चिकित्सा क्षेत्र में सिद्ध आसव के रूप में इसका इस्तेमाल आवकार्य है परन्तु हलकी कक्षा की मदिरा, असंतुलित कीमते और अधिकतर नशे के उपलक्ष में ग्रहण और साथ में नशे की गुलामी, परिणाम स्वरुप अपराध और असामाजिक घटना की वृद्धि होना, और बस होते ही रहना, नशे के कारण मति भ्रष्ट होना, घर - परिवार बरबाद होना - उजड़ना - यह सब संकेत है की विवेक और मर्यादा को ध्यान में रखकर उचित समय पर उचित मात्रा में उच्च गुणवत्ता युक्त सोमरस का पान नहीं हो रहा है | ना ऐसी मदिरा सरलता से उपलब्ध है और ना ऐसी मदिरा का, उचित रूप में पान किया जा रहा है |

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  3. नशे की जिन्दगी, नशे की मृत्यु..

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  4. राकेट के अविष्कारक - शेर - ए - मैसूर टीपू सुल्तान - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. पढ़ आये... सब नशे में है, सरकार जिसे भ्रष्टाचार से फुर्सत नहीं, अवैध कारोबारी जिन्हें लूटने से फुर्सत नहीं और जनता जिन्हें मिचमिची आँखों से सब साफ़ दीखता नही..

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  6. मस्त हैं जो मदहोश हैं, होश वाले तो पस्त होने के लिये हैं।

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।