देखके लट-घटा माथे पे उनके,मनमोर हो गए है,
अफ़साने मुहब्बत के इत्तफ़ाक़,घनघोर हो गए है।
कलतक खाली मकां सा लगता था ये दिल मुआ,
हुश्नो-आशिकी के इसपे ,अब कई फ्लोर हो गए है।
गली से इठला के गुजरती है, चांदनी भी अब तो,
वो क्या कि चंदा के दीवाने, कई चकोर हो गए है।
वो क्या जाने देखने की कला, टकटकी लगाकर,
खुद की जिन्दगी से दिलजले जो, बोर हो गए है।
राह चलते तनिक उनसे, कभी नजर क्या चुराई,
नजरों में ही उनकी 'परचेत',अपुन चोर हो गए है।
:):) बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत मजेदार रोचक ग़ज़ल और इस शेर के तो क्या कहने :):):)--कलतक खाली प्लाट सा लगता था जो मुआ दिल,
ReplyDeleteउसपे हुश्नो-आशिकी के अब, कई फ्लोर हो गए है।
वाह वाह! क्या बात है!! वैसे पूर्णिमा के पावन अवसर पर हम तो कब से यह गुन गुना रहे है |
ReplyDeletehttp://www.youtube.com/watch?v=f8wai8RSkHE
ये दिल्लगी है या दिल की लगी है ...लो भी है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया है :-))
शुभकामनायें!
वाह क्या बात है!
ReplyDeleteवो क्या जाने देखने की कला, टकटकी लगाकर, खुद की जिन्दगी से दिलजले जो, बोर हो गए है।
ReplyDeleteबहुत सार्थक प्रस्तुति .aabhar
रस ले ले के पढ़ा -
ReplyDeleteमजा आ गया भाई-
आशिक की दिक्कत बढ़ी, फ्लोर फ्लोर पर हुश्न |
कैसे जाऊं सब जगह, बना मुझे अब कृष्ण ||
बहुत खूब..रोचक..
ReplyDeleteगली से इठला के निकलती है,चांदनी भी अब तो,
ReplyDeleteवो क्या कि चंदा के दीवाने, कई चकोर हो गए है।
...बहुत खूब!
वाह वाह ! क्या बात है !
ReplyDeleteयह मूड भी खूब है. :)
क्या कहने, क्या कहने!
ReplyDeleteइस हौंसला अफ्जाई के लिए आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ !
ReplyDeleteहा हा हा
ReplyDeleteघनघोर रचना !
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