...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
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प्रश्न -चिन्ह ?
पता नहीं , कब-कहां गुम हो गया जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए और ना ही बेवफ़ा।
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स्कूटर और उनकी पत्नी स्कूटी शहर के उत्तरी हिस्से में सरकारी आवास संस्था द्वारा निम्न आय वर्ग के लोगो के लिए ख़ासतौर पर निर्म...
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पहाड़ों की खुशनुमा, घुमावदार सडक किनारे, ख्वाब,ख्वाहिश व लग्न का मसाला मिलाकर, 'तमन्ना' राजमिस्त्री व 'मुस्कान' मजदूरों...
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शहर में किराए का घर खोजता दर-ब-दर इंसान हैं और उधर, बीच 'अंचल' की खुबसूरतियों में कतार से, हवेलियां वीरान हैं। 'बेचारे' क...
मच्छर खच्चर हैं बड़े, अक्षर दिखते भैस ।
ReplyDeleteबैठ गुरू करता रहा, कक्षा अन्दर ऐश ।
कक्षा अन्दर ऐश, पढाया कितने पट्ठे ।
हथियारों से लैश, धमकते जाय इकट्ठे ।
फिर भी उनको चैन, परेशाँ जनता रविकर ।
करे हिफाजत शिष्य, मारते हिट से मच्छर ।।
कुछ हो ना हो, जन साधारण जितना जूजा है अब और जुजता रहेगा मलेरिया, फ्लू, स्वाइन फ्लू, डेंगू, चिकनगुनिया, फाल्सीपेरम, कंजकटीवाईटीस, शिरशुल, अवर्णित विषम जवर इत्यादि कई अजैविक - घातक - वेदनाकारी - पीड़ामय अवस्थाओ से, लेकिन अब कारागृह सतर्क हो जायेंगे, लगे हाथो, आये दिनों में कम से कम डेंगू या अन्य कोई प्रचलित मछर अथवा उनकी कोई जाती - प्रजाति को प्रवेश निषेध जरुर लगेगा - कारागृह में मच्छरों का अब आना जाना कुछ दिन की ही बात रह गयी अब | और यह भगाए - प्रताड़ित - निष्कासित मच्छर जाये तो जाये कहाँ! ............. जाए तो जाए कहाँ, समजेगा कौन यहाँ, दर्द भरे मच्छरों की जुबान.... इन मच्छरों की जुबान जन साधारण को रात को सोते वक्त कानो में गूंजेगी |
ReplyDeletegood one
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (25-11-2012) के चर्चा मंच-1060 (क्या ब्लॉगिंग को सीरियसली लेना चाहिए) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
हा हा..
ReplyDeleteचाहे डेंगू से ही हो हम निजात तो पायें इन आतंकियों से । मच्छर को ही दया आ गई भारतवासियोंपर ।
ReplyDeleteसही बात है, इतने साल बाद तो अब मच्छरों से ही उम्मीद बची है
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeletewow.............beautiful.
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