...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
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प्रश्न -चिन्ह ?
पता नहीं , कब-कहां गुम हो गया जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए और ना ही बेवफ़ा।
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स्कूटर और उनकी पत्नी स्कूटी शहर के उत्तरी हिस्से में सरकारी आवास संस्था द्वारा निम्न आय वर्ग के लोगो के लिए ख़ासतौर पर निर्म...
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पहाड़ों की खुशनुमा, घुमावदार सडक किनारे, ख्वाब,ख्वाहिश व लग्न का मसाला मिलाकर, 'तमन्ना' राजमिस्त्री व 'मुस्कान' मजदूरों...
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शहर में किराए का घर खोजता दर-ब-दर इंसान हैं और उधर, बीच 'अंचल' की खुबसूरतियों में कतार से, हवेलियां वीरान हैं। 'बेचारे' क...
दिखा पिछाड़ी जो रहा, रविकर वही अमूर्त |
ReplyDeleteदो कौड़ी में बिक गया, लेता ग्राहक धूर्त |
लेता ग्राहक धूर्त, राष्ट्रवादी यह खोता |
खोता रोता रोज, यज्ञ आदिक नहिं होता |
खुली विदेशी शॉप, खींचता उनकी गाड़ी |
बनता लोमड़ जाय, अनाड़ी दिखा पिछाड़ी ||
कार्टून कुछ नहीं, बहुत कुछ बोलता है!
ReplyDeleteआजकल के अधिकाँश नेता (कुछ एक ), को छोड़कर मूर्खों की जमात के ही हैं ! सब कुछ बोलेंगे लेकिन मुद्दे पर स्थिर कभी नहीं रहते ! कब डंकी से हॉर्स पर स्विच कर ,जाते हैं पता ही नहीं लगता .
ReplyDeleteदमदार आर्थिक सोच यहीं से लागू की जा सकती है..
ReplyDeleteAnimals have been better-offs.
ReplyDeleteकमाल की प्रस्तुती
ReplyDeleteअसल् बात तो यह है की मेले में एक से एक बड़े गधे आये हैं तो वे बोलेंगे क्या |वे तो एक सुर में राग अलाप सकते हैं |
ReplyDeleteआशा