Thursday, November 29, 2012

कार्टून कुछ बोलता है -उज्जैन का खोता मेला


7 comments:

  1. दिखा पिछाड़ी जो रहा, रविकर वही अमूर्त |
    दो कौड़ी में बिक गया, लेता ग्राहक धूर्त |
    लेता ग्राहक धूर्त, राष्ट्रवादी यह खोता |
    खोता रोता रोज, यज्ञ आदिक नहिं होता |
    खुली विदेशी शॉप, खींचता उनकी गाड़ी |
    बनता लोमड़ जाय, अनाड़ी दिखा पिछाड़ी ||

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  2. कार्टून कुछ नहीं, बहुत कुछ बोलता है!

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  3. आजकल के अधिकाँश नेता (कुछ एक ), को छोड़कर मूर्खों की जमात के ही हैं ! सब कुछ बोलेंगे लेकिन मुद्दे पर स्थिर कभी नहीं रहते ! कब डंकी से हॉर्स पर स्विच कर ,जाते हैं पता ही नहीं लगता .

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  4. दमदार आर्थिक सोच यहीं से लागू की जा सकती है..

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  5. Animals have been better-offs.

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  6. कमाल की प्रस्तुती

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  7. असल् बात तो यह है की मेले में एक से एक बड़े गधे आये हैं तो वे बोलेंगे क्या |वे तो एक सुर में राग अलाप सकते हैं |
    आशा

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।