Wednesday, November 21, 2012

ओ रे कसाब !




गर किया होता तूने 
एक ठों काम नायाब,
फिर चुकाना क्यों पड़ता 
इसतरह तुझे 
अपने कर्मों का हिसाब !
ओ रे कसाब !!

नरसंहार का 
एक अकेला 
तू ही नहीं गुनहगार,
क्योंकि इन बीहडो में  
हर रोज होता है,
हजारों निर्दोषों का शिकार!
अद्भुत और फरेब भरी 
यहाँ की रीति से, 
कुछ बन्दूक से 
तो कुछ कूटनीति से, 
फिर भी कोई माँगता नहीं 
उनकी इस 
कुटिलता का हिसाब,
मगर तुम 
फंस गए जनाब !
ओ रे कसाब !!

तू  छला गया, 
इसलिए दुनिया छोड़ 
चला गया,
मगर ये कुटिल,
अपनी कुटिलता के  
तीर और कमान से,  
गुलछर्रे उड़ा रहे यहाँ 
आम खर्च पर शान से,
पहनकर चेहरे पर , 
शराफत का नकाब,
मगर तुमने  वो 
क्यों नहीं पहना जनाब ? 
ओ रे कसाब !! 


13 comments:

  1. अभी तो एक हुआ हिसाब ,
    अभी बचे है कई कसाब.....

    मुबारक हो!

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  2. बुरे काम का बुरा नतीजा |
    चच्चा बाकी, चला भतीजा ||

    गुरु-घंटालों मौज हो चुकी-
    जल्दी ही तेरा भी तीजा ||

    गाल बजाया चार साल तक -
    आज खून से तख्ता भीजा ||

    लगा एक का भोग अकेला-
    महाकाल हाथों को मींजा |

    चौसठ लोगों का शठ खूनी -
    रविकर ठंडा आज कलेजा ||

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  3. Some good and rare words - advise to Ajmal and a tribute as well! Truly a humane expression for a person like him, for many.

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  4. सुंदर है लेकिन "हे कसाब" की जगह
    "ओ रे कसाब" होता तो ज्यादा ठीक था:)

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  5. @nilesh mathur
    आपका सुझाव सर आँखों पर माथुर साहब !

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  6. अभी तो बहुतों का हिसाब बाकी है । पर कसाब गया शुरुवात तो हुई ।

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  7. बहुत बढ़िया... दुष्ट को उसके कर्मों का फल मिल गया

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  8. नकाब पहन न जाने कितने कसाब जिंदा है ... बढ़िया प्रस्तुति

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  9. भारतीय जनता तथा भारत के सत्ता पक्ष के नेता काफी खुश नज़र आ रहे हैं. शायद नेताओं की खुशी की ही बात है इतना बड़ा तीर जो मार लिए हैं. भले ही यह एक छोटी सी उपलब्धि हो पर काफी बड़े to read full story click this link-http://politysatire.jagranjunction.com/2012/11/29/secret-of-kasab-hanging/

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।