इस कार्टून के साथ कल एक मशहूर ५५ शब्दिया कहानी जोड़ना भूल गया था , आज प्रस्तुत है ;
नेता ने अपनी फूटी आँख का ओपरेशन करवाया और पत्थर की आँख लगाई ! चश्मा उतारकर निजी सचिव से बोला; क्या तुम पहचान सकते हो मैंने कौनसी आँख नकली लगाईं ? सेक्रेटरी ने जबाब दिया; हुजूर दाहिनी आँख ! नेता चकित होकर बोला ; कैसे पहचाना ? सचिव बोला ; हजूर नई है, इसलिए उसमे थोड़ी सी शर्म झलक रही है !
धक्का लगता मर्म पर, उतरे नयना शर्म ।
ReplyDeleteअसरदार ये वाकिये, हैं वाकई अधर्म ।
हैं वाकई अधर्म, कुकर्मों से घबराया ।
लेकिन ऐ सरदार, फर्क तुझ पर नहिं आया ।
कहता यह सरदार, फर्क आया है पक्का ।
घुटनों में अति दर्द, सोच को बेहद धक्का ।।
कार्टून खूब बोलता है!
ReplyDeleteआँखों का बोलना संवाद गहरा करता है।
ReplyDeleteदेखन में ......संक्षिप्त किन्तु प्रभावी रचना ....आभार
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