Wednesday, October 17, 2012

कार्टून कुछ बोलता है- आँखों का फर्क !



इस कार्टून के साथ कल  एक मशहूर ५५ शब्दिया कहानी जोड़ना भूल गया था , आज प्रस्तुत है ;

नेता ने अपनी फूटी आँख का ओपरेशन करवाया  और पत्थर की आँख लगाई  ! चश्मा उतारकर निजी सचिव से बोला; क्या तुम पहचान सकते हो मैंने कौनसी आँख नकली लगाईं ? सेक्रेटरी ने जबाब दिया; हुजूर दाहिनी आँख !  नेता चकित होकर बोला ; कैसे पहचाना ? सचिव बोला ; हजूर नई है, इसलिए उसमे थोड़ी सी शर्म झलक रही है !  

4 comments:

  1. धक्का लगता मर्म पर, उतरे नयना शर्म ।

    असरदार ये वाकिये, हैं वाकई अधर्म ।

    हैं वाकई अधर्म, कुकर्मों से घबराया ।

    लेकिन ऐ सरदार, फर्क तुझ पर नहिं आया ।

    कहता यह सरदार, फर्क आया है पक्का ।

    घुटनों में अति दर्द, सोच को बेहद धक्का ।।

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  2. आँखों का बोलना संवाद गहरा करता है।

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  3. देखन में ......संक्षिप्त किन्तु प्रभावी रचना ....आभार

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संशय!

इतना तो न बहक पप्पू ,  बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर, ४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे,  नादानियां तेरी, कहर  बनकर।