Wednesday, October 10, 2012

जो कुछ सासू जी ने लूटा,तो कुछ जमाई ने !


छल कपट,धोखा धड़ी और खुद नुमाई ने,    (खुद नुमाई= खुद की तारीफ़ )
क्या-क्या न सितम ढाये,यहां बेहयाई ने।  
स्तब्ध खडा देखता है इस वतन 'परचेत',   
जो कुछ सासू ने लूटा,तो कुछ जमाई ने।  


10 comments:

  1. स्तब्ध खड़ा देखता देखता है-----------------
    खूब सूरत कबिता देश भक्तिपूर्ण लेकिन बिद्रोह करती हुई -----बहुत-बहुत धन्यवाद
    देश जगाते रहने के प्रयत्न ---आभार

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  2. बहुत खूब सर जी ... क्या बात है !


    विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर देश के नेताओं के लिए दुआ कीजिये - ब्लॉग बुलेटिन आज विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम और पूरे ब्लॉग जगत की ओर से हम देश के नेताओं के लिए दुआ करते है ... आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !

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  3. काश इस देश को भी स्थायित्व मिले।

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  4. जायदाद आधी मिले, कानूनन यह सत्य |
    बेटी को दिलवा दिया, हजम करो यह कृत्य |
    हजम करो यह कृत्य, भृत्य हैं गिरिजा सिब्बल |
    चाटुकारिता काम, दिया उत्तर बेअक्कल |
    माँ की दो संतान, बटेगा आधा आधा |
    देखे हिन्दुस्तान, कहीं डाले ना बाधा ||

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  5. बहुओं पर इतनी कृपा, सौंप दिया सरकार ।
    बेटी से क्या दुश्मनी, करते हो तकरार ।
    करते हो तकरार, होय दामाद दुलारा ।
    छोटे मोटे गिफ्ट, पाय दो-चार बिचारा ।
    पीछे ही पड़ जाय, केजरी कितना काला ।
    जाएगा ना निकल, देश का यहाँ दिवाला ।

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  6. जो कुछ सासू जी ने लूटा,तो कुछ जमाई ने !

    छलकपट, धोखाधड़ी और खुद नुमाई ने, (खुद नुमाई= खुद की तारीफ़ )
    क्या-क्या न सितम ढाये, इस बेहयाई ने !

    साम,दाम,दंड,भेद, उपाय अपनाके सभी,
    किये वश में सब लुटेरे, परदेशी माई ने !

    जल,थल, आकाश, कुछ भी तो न छोड़ा,
    रिकॉर्ड तोड़ डाले, उजली-काली कमाई ने !

    शर्मशार करके रख दिया इंसानियत को,
    देशद्रोही इन, रहनुमाओं की रहनुमाई ने !

    स्तब्ध खडा देखता है अपना वतन 'परचेत',
    जो कुछ सासू जी ने लूटा,तो कुछ जमाई ने !!

    बेहद सशक्त रचना .

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  7. बहुत बढ़िया .... और देश के नेता सब उनको बचाने में लगे हैं ॥

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  8. बहुत बढ़िया सामयिक ग़ज़ल बढ़िया कटाक्ष

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  9. देश की समसामयिक स्थिति पर कटाक्ष करती उम्दा रचना |
    नई पोस्ट:-
    ओ कलम !!

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  10. वाह सर ! देश के वर्तमान हालातों पर कलम ( कीबोर्ड) की पैनी नजर देखने ही बनती है......
    विडंबना देखिये की -
    देश के लिए एक कतरा खून भी नहीं
    और उनके लिए जान भी हाजिर है....

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।