थाम लो उम्मीद का दामन, छूट न जाए,
रखो अरमाँ सहेजकर, कोई लूट न जाए।
तुम्हारे ख़्वाबों से भी नाजुक है दिल मेरा,
हैंडल विद एक्स्ट्रा केयर,कहीं टूट न जाए।
उलटबासी
शायद ही बचा रह गया हो कोई धाम,
क्या मथुरा, क्या वृंदावन,क्या काशी,
किस-किस से नहीं पूछा पता उसका,
क्या धोबी,क्या डाकिया,क्या खलासी,
सबके सब फ़लसफ़े,इक-इककर खफ़े,
लिए घुमते रहे बनाकर सूरत रुआँसी,
लिए घुमते रहे बनाकर सूरत रुआँसी,
उम्र गुजरी,तब जाके ये अहसास हुआ,
जिंदगी घर में थी, हमने मौत तलाशी।
उम्र गुजरी,तब जाके ये अहसास हुआ,
ReplyDeleteजिंदगी घर में थी, हमने मौत तलाशी।
..बहुत बढ़िया ....पहले घर फिर बाहर
बहुत सुंदर ...रक्षाबंधन की शुभकामनायें
ReplyDeleteक्या बात सर ... हैंडल विथ एक्स्ट्रा केयर ...
ReplyDeleteरक्षाबंधन की बधाई ...
बेहद उम्दा.. .बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनायें...