हुई जबसे शादी, जीरो वाट के बल्ब की तरह जलता हूँ,
यूं तो पैरों पे अपने ही खड़ा हूँ मगर, रिमोट से चलता हूँ।
माँ-बाप तो पच्चीस साल तक भी नाकाम रहे ढालने में,
अब मोम की तरह बीवी के बनाये, हर साँचे में ढलता हूँ।
न ही काला हूँ, कलूटा हूँ, न ही गंजा हूँ और न लंगड़ा हूँ ,
फिर भी उससे दहशतज़दा हूँ, उसकी नजरों में खलता हूँ।
डोर से बँधी इक पतंग सी बन कर रह गई है जिंदगी ,
सब ठीक हो जाएगा यही समझाकर दिल को छलता हूँ।
सब ठीक हो जाएगा यही समझाकर दिल को छलता हूँ।
हकीकत तो ये है कि खुद कमाकर पालता हूँ पेट अपना ,
किंतु एहसास ये मिलता है,किसी के टुकड़ों पर पलता हूँ।
जोड़ी थी जिसने जन्मपत्री, बेड़ा-गरक हो उस पंडत का,
उजला भी काला दिखे अब तो 'परचेत', आँखें मलता हूँ।