Wednesday, December 31, 2014

नूतन वर्ष की मंगलमय कामनाएं !



शुभकामनाये और मंगलमय नववर्ष की दुआ ! 

                                                 

Saturday, December 6, 2014

नृशंसता का यथार्थ !















नापाक  हरकते  कभी पाक नहीं होती ,
चालबाजी  कभी इत्तेफाक नहीं  होती ,
वास्ता दे-दे के जो अनुसरण करवाये ,
ऐसे मजहबों की कोई धाक नहीं होती।  

बलात् भगत जितना भी बद्ध दिखाए,
जहन किंतु श्याम वर्ण त्याग न पाए , 

क्रिया, मुख से जितना भी दम्भ  भरे,
त्रासित छाती  कभी  चाक नहीं होती।  

नियम,नियमावली ऐसे कामगार के, 

तामील होती है ज्यूँ ,बेड़ियां  डार के ,
एक आजाद शख़्सियत वहाँ  होती है, 
जहां बंदिशों की कोई ताक नहीं होती।

अपने लिए तो बटोरा उस पार तक, 

और दूसरों का छीना जीने का हक़ ,
नृशंसता की हर हद लांघी है फिर भी,
शर्म से नीची कोई नाक नहीं होती।

साये में जिंदगी कोई करामात ही है ,

मुकाम मिले तो वो भी खैरात ही है ,
अस्तित्व का सच तो ये  है 'परचेत ',
अवसानोपरांत कोई ख़ाक नहीं होती। 

Tuesday, December 2, 2014

हुनर ने जहां साथ छोड़ा, सलीका वहाँ काम आया।






इक ऐसा मुकाम आया,तोहमत छली का आम आया, 
वंश-नस्ल का नाम उछला, गाँव,गली का नाम आया।
   
हमी से सुरूरे-इश्क में , कही हो गई कोई भूल शायद,  
मुहब्बत तो खरी थी हमारी,नकली का इल्जाम आया।  

नजर से आके जब लगे वो, आशिकी का तीर बनकर,  
खुशी की सौगात लेकर, पर्व दीपावली का धाम आया।   

सत्कार काँटों  ने किया पर, थे हमारे ख्वाब कोमल,
सीने लगूंगी फूल बनके, इक कली  का पैगाम आया।  

राग-बद्ध करने चला जब, प्रीति के दो लब्ज 'परचेत' ,
हुनर ने जहां साथ छोड़ा, फिर वहाँ सलीका काम आया।

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।