इक ऐसा मुकाम आया,तोहमत छली का आम आया,
वंश-नस्ल का नाम उछला, गाँव,गली का नाम आया।
हमी से सुरूरे-इश्क में , कही हो गई कोई भूल शायद,
मुहब्बत तो खरी थी हमारी,नकली का इल्जाम आया।
नजर से आके जब लगे वो, आशिकी का तीर बनकर,
खुशी की सौगात लेकर, पर्व दीपावली का धाम आया। सत्कार काँटों ने किया पर, थे हमारे ख्वाब कोमल,
सीने लगूंगी फूल बनके, इक कली का पैगाम आया।
राग-बद्ध करने चला जब, प्रीति के दो लब्ज 'परचेत' ,
हुनर ने जहां साथ छोड़ा, फिर वहाँ सलीका काम आया।
सत्कार काँटों ने किया पर, थे हमारे ख्वाब कोमल,
ReplyDeleteसीने लगूंगी फूल बनके, इक कली का पैगाम आया ..
बहुत खूब ... कलियों के इस पैगाम को पकड़ के रखना .... कोमल ख्वाब खिलने लगेंगे ......
kya bat....wah
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeletebahut hi sunder
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