Saturday, December 6, 2014

नृशंसता का यथार्थ !















नापाक  हरकते  कभी पाक नहीं होती ,
चालबाजी  कभी इत्तेफाक नहीं  होती ,
वास्ता दे-दे के जो अनुसरण करवाये ,
ऐसे मजहबों की कोई धाक नहीं होती।  

बलात् भगत जितना भी बद्ध दिखाए,
जहन किंतु श्याम वर्ण त्याग न पाए , 

क्रिया, मुख से जितना भी दम्भ  भरे,
त्रासित छाती  कभी  चाक नहीं होती।  

नियम,नियमावली ऐसे कामगार के, 

तामील होती है ज्यूँ ,बेड़ियां  डार के ,
एक आजाद शख़्सियत वहाँ  होती है, 
जहां बंदिशों की कोई ताक नहीं होती।

अपने लिए तो बटोरा उस पार तक, 

और दूसरों का छीना जीने का हक़ ,
नृशंसता की हर हद लांघी है फिर भी,
शर्म से नीची कोई नाक नहीं होती।

साये में जिंदगी कोई करामात ही है ,

मुकाम मिले तो वो भी खैरात ही है ,
अस्तित्व का सच तो ये  है 'परचेत ',
अवसानोपरांत कोई ख़ाक नहीं होती। 

5 comments:

  1. नापाक हरकते कभी पाक नहीं होती ,
    चालबाजी कभी इत्तेफाक नहीं होती /
    ..सच कहा आपने चालबाजी सोच समझी चाल ही होती हैं ....

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (07-12-2014) को "6 दिसंबर का महत्व..भूल जाना अच्छा है" (चर्चा-1820) पर भी होगी।
    --
    सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुरत घी गहरी बात कह गए आप इस रहना के माध्यम से ...

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  4. क्‍या बात है। बहुत बढ़िया।

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।