नापाक हरकते कभी पाक नहीं होती ,
चालबाजी कभी इत्तेफाक नहीं होती ,
वास्ता दे-दे के जो अनुसरण करवाये ,
ऐसे मजहबों की कोई धाक नहीं होती।
बलात् भगत जितना भी बद्ध दिखाए,
जहन किंतु श्याम वर्ण त्याग न पाए ,
क्रिया, मुख से जितना भी दम्भ भरे,
त्रासित छाती कभी चाक नहीं होती।
नियम,नियमावली ऐसे कामगार के,
तामील होती है ज्यूँ ,बेड़ियां डार के ,
एक आजाद शख़्सियत वहाँ होती है,
जहां बंदिशों की कोई ताक नहीं होती।
अपने लिए तो बटोरा उस पार तक,
और दूसरों का छीना जीने का हक़ ,
नृशंसता की हर हद लांघी है फिर भी,
शर्म से नीची कोई नाक नहीं होती।
साये में जिंदगी कोई करामात ही है ,
मुकाम मिले तो वो भी खैरात ही है ,
अस्तित्व का सच तो ये है 'परचेत ',
अवसानोपरांत कोई ख़ाक नहीं होती।
wh wah......bahut sundar
ReplyDeleteनापाक हरकते कभी पाक नहीं होती ,
ReplyDeleteचालबाजी कभी इत्तेफाक नहीं होती /
..सच कहा आपने चालबाजी सोच समझी चाल ही होती हैं ....
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (07-12-2014) को "6 दिसंबर का महत्व..भूल जाना अच्छा है" (चर्चा-1820) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुरत घी गहरी बात कह गए आप इस रहना के माध्यम से ...
ReplyDeleteक्या बात है। बहुत बढ़िया।
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