है अनुयुग समक्ष, सकल संतापी,
त्रस्त सदाशय, जीवन आपाधापी,
बेदर्द जहां, है अस्तित्व नाकाफी,
मुक्त हस्त जिंदगी, भोगता पापी।
दिन आभामय बीते, रात अँधेरी,
लक्ष्य है जिनका, सिर्फ हेराफेरी,
कर्म कलुषित, भुज माला जापी,
मुक्त हस्त जिंदगी, भोगता पापी।
कृत्य फरेब, कृत्रिम ही दमको,
पातक चरित्र, सिखाता हमको ,
अपचार की राह है, उसने नापी,
मुक्त हस्त जिंदगी, भोगता पापी।
धूर्त वसूले, हर बात पे अड़कर,
शरीफ़ न पाये, कुछ भी लड़कर ,
व्यतिरेक की आंच, उसने तापी,
मुक्त हस्त जिंदगी, भोगता पापी।
त्रस्त सदाशय, जीवन आपाधापी,
बेदर्द जहां, है अस्तित्व नाकाफी,
मुक्त हस्त जिंदगी, भोगता पापी।
दिन आभामय बीते, रात अँधेरी,
लक्ष्य है जिनका, सिर्फ हेराफेरी,
कर्म कलुषित, भुज माला जापी,
मुक्त हस्त जिंदगी, भोगता पापी।
कृत्य फरेब, कृत्रिम ही दमको,
पातक चरित्र, सिखाता हमको ,
अपचार की राह है, उसने नापी,
मुक्त हस्त जिंदगी, भोगता पापी।
धूर्त वसूले, हर बात पे अड़कर,
शरीफ़ न पाये, कुछ भी लड़कर ,
व्यतिरेक की आंच, उसने तापी,
मुक्त हस्त जिंदगी, भोगता पापी।