मैट्रो के डिब्बों में 'आसन व्यवस्था' की नई परिकल्पना !
(New concept of 'seating arrangement' in Metro coaches ! )
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि बड़े शहरों में आज जहां आवागमन समस्या एक विकराल रूप धारण कर चुकी है, वहीँ, मैट्रो इस समस्या के समाधान में एक अहम् भूमिका अदा कर रही है। एक अध्ययन के मुताविक तकरीबन ३० लाख लोग प्रतिदिन देश की राजधानी दिल्ली और एनसीआर में अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए मैट्रो का इस्तेमाल करते है।
यही वजह है कि आज देश का हर राज्य , हर बड़ा शहर इस 'व्यापक द्रुत परिवहन प्रणाली' Mass Rapid Transport System (MRTS) की ओर अग्रसर होता चला जा रहा है। मेरे लिए यह एक संयोग ही है कि किन्ही अपरिहार्य कारणों से मैं भी पिछले करीब ६ महीने से नियमित रूप से सुबह और शाम इस सुविधा का ही इस्तेमाल कर रहा हूँ।
इन पांच-छः महीनो में मैट्रो में सफर के अपने भी काफी खट्टे-मीठे अनुभव रहे है। मैं निसंकोच कह सकता हूँ कि अभी तक मैट्रो संस्था, उससे जुड़े कर्मचारी, और सीआरपीऍफ़ के जवान अपने कर्तव्य का निर्वहन बखूबी कर रहे हैं। हालांकि, डिब्बे की आतंरिक संरचना और उस पर काबिज पथिकों से थोड़ी बहुत शिकायत भी है। मसलन कुछ ही भाग्यशालियों के लिए बैठने का इंतजाम, स्त्रीलिंग के लिए अलग डिब्बा और हर डिब्बे में चंद सीट आरक्षित होने के बावजूद भी उनका उन सीटों पर बैठना जो सामान्य किस्म के प्राणी इस्तेमाल कर सकते है, जबकि उनके लिए आरक्षित सीट भी खाली पड़ी है।
खैर, मैट्रो की उच्च गुणवत्ता बनाये रखने हेतु यह भी जरूरी है कि उसके प्रवंधन के हाथ में प्रयाप्त संसाधन उपलब्ध रहें। वरना, आगे चलकर कहीं इस द्रुत प्रणाली का हश्र भी कहीं हमारी आज की रेलवे व्यवस्था की तरह ही न हो जाए। एक वीडियों हाथ लगा तो ख़याल आया कि मैट्रों में भी कुछ ऐसी ही व्यवस्था हो जाए तो क्या कहने।
हर डिब्बे के आधे में सीट ही सीट हों और आधा डिब्बा खड़े पथिकों के लिए हो। जिसे बैठना हो, यहां संलग्न वीडियों की तर्ज पर अतिरिक्त शुल्क दे और सीट का मजा ले। वरना............... :-)