हिम्मत है तुझमें तो तू निकल के दिखा,
मुख से, पेट से, दांतों या फिर आंखों से,
ऐ मेरे दर्द, अब तू बच नहीं सकता, क्योंकि
मैने तुझे बांध दिया है, जिंदगी की सलाखों से।
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हिम्मत है तुझमें तो तू निकल के दिखा,
मुख से, पेट से, दांतों या फिर आंखों से,
ऐ मेरे दर्द, अब तू बच नहीं सकता, क्योंकि
मैने तुझे बांध दिया है, जिंदगी की सलाखों से।
दुआ है कि इसीतरह फूले-फले व्यवसाय तुम्हारा,
ऐ तमाम दौरा-ए-कोरोना, कफन बेचने वालों,
मगर, कुछ कतरा-ए-कफ़न अपने लिए भी सम्भाले रखना,
क्या पता, कब इसकी जरूरत, तुम्हें भी आन पडे।
पता नहीं , कब-कहां गुम हो गया जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए और ना ही बेवफ़ा।