कुछ प्यार के इजहार मे हैं
कुछ पाने के इंतजार मे हैं,
फर्क बस इतना है,ऐ दोस्त!
कि तुम इस दयार मे हो,
और हम उस दयार मे हैं।
मुहब्बत मे डूबे हुए को,
बीमार कहती है ये दुनिया,
कुछ स्वस्थ होकर जहां से गये,
कुछ अभी उपचार मैं हैं।
इस जद्दोजहद मे शिरकत
सिर्फ़, तुम्हारी ही नहीं है,
मंजिल पाने को सिद्दत से,
हम भी कतार मे हैं।
हमें नसीब हुआ ही कब था,
वक्त गैरों से विरक्त होने का?
एहसानों के सारे बोझ,
बस, यूं कहें कि उलार मे हैं।
बेरहमी से ठुकराई गई,जबकि
सच्ची थी उलफ़त हमारी ,
और नफरतों के सौदागर,
अब उनके दुलार मे हैं।
ऐसे अनगिनत महानुभावों से,
हम खुद भी रुबरु हुए जिन्होंने,
पहले सिर्फ़ अपना भला किया,
और अब शामिल परोपकार मे हैं।
Bahut sundar rachna 👍👍
ReplyDeleteवाह क्या बात । बहुत खूब
ReplyDeleteआभार, आपका🙏
ReplyDeleteयथार्थ की आँच से तपाती गुनगुनी सी सुन्दर कविता ! बहुत खूब परचेत जी !
ReplyDeleteहमें नसीब हुआ ही कब था,
ReplyDeleteवक्त गैरों से विरक्त होने का?
एहसानों के सारे बोझ,
बस, यूं कहें कि उलार मे हैं। ---वाह
🙏🙏 आभार आपका।
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति। बेहतरीन कविता।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
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