Thursday, September 25, 2025

गिला

जीवन रहन गमों से अभिभारित,

कुदरत ने विघ्न भरी आवागम दी,

मन तुषार, आंखों में नमी ज्यादा,

किंतु बोझिल सांसों में हवा कम दी,

तकाजों का टिफिन पकड़ाकर भी,

हमें रह गई बस  गिला इतनी तुमसे,

ऐ जिन्दगी, तूने दर्द ज्यादा दवा कम दी।

Wednesday, September 24, 2025

पिता !

समझ पाओ तो

यूं समझिए कि

तुम्हारा आई कार्ड,

 निष्कृयता नाजुक, 

 और निष्पादन  हार्ड।

( यह चार लाइनें पितृपक्ष के दरमियां लिखी थी पोस्ट करना भूल गया,,,,,बस यही तो है कलयुगी बेटों का कमाल)


कशिश !

उनपे जो ऐतबार था, अब यह समझ वो मर गया,

यूं समझ कि जो पैग का खुमार था, देह से उतर गया,

परवाह रही न जिंदगी को अब किसी निर्लज्ज की,

संजोए रखा बना के मोती, नयनों से खुद झर गया।

Friday, September 19, 2025

फटने को तत्पर, प्रकृति के मंजर।


अभी तक मैं इसी मुगालते में जी रहा था

सांसों को पिरोकर जिंदगी मे सीं रहा था,

जो हो रहा पहाड़ो पर, इंद्रदेव का तांडव है,

सुरा को यूं ही सोमरस समझकर पी रहा था।


किंतु अब जाके पता चला कि तांडव-वांडव कुछ नहीं ,

विकास-ए-परती धरा ये, स्वर्ग वालों को खटी जा रही, 

ये तो "ऋतु बरसात' इक बहाना था बादल फटने का,

नु पता आपरेशन सिंदूर देख, इंद्रदेव की भी फटी जा रही।




Friday, September 12, 2025

उपजीवी !


मिली तीन-तीन गुलामियां तुमको प्रतिफल मे,

और कितना भला, भले मानुष ! तलवे चाटोगे।

नाचना न आता हो, न अजिरा पे उंगली उठाओ,

अरे खुदगर्जों, जैसा बोओगे, वैसा ही तो काटोगे।।


अहम् ,चाटुकारिता को खुद आत्मसात् करके,

स्वाभिमान पर जो डटा है,उसे तुम क्या डांटोगे।

आम हित लगा नाटा, निहित हित में देश बांटा,

जाति-धर्म की आड़ में जन और कितना बांटोगे।।


स्वाधीनता नाम दिया, जुदा भाई को भाई से किया,

औकात क्या है अब तुम्हारी जो बिछड़ों को सांटोगे।

जड़ें ही काट डाली जिस वटवृक्ष की 'परचेत' तुमने, 

उस दरख़्त की डालियों को, और कितना छांटोगे।।


 

Friday, September 5, 2025

इतना क्यों भला????

बडी शिद्दत से उछाला था हमने 

दिल अपना उनके घर की तरफ,

लगा,जाहिर कर देंगे वो अपनी मर्जी,

तड़पकर उछले हुए दिल पर हमारे।


रात भर ताकते रहे यही सोचकर, 

सिरहाने रखे हुए सेलफोन को,

सहमे से सुर,फोन करेंगे और कहेंगे, 

कुछ गिरा तो है दिल पर हमारे।


मुद्दत गुज़र गई, दिल को न सुकूं आया,

दीवानगी का वो सफर 'मुकाम-ए-परचेत',

कारवां जिगर का भटका वहीं पर कहीं जहां,

लगी 'तंगदिल' की मुहर नरमदिल पर हमारे।

गिला

जीवन रहन गमों से अभिभारित, कुदरत ने विघ्न भरी आवागम दी, मन तुषार, आंखों में नमी ज्यादा, किंतु बोझिल सांसों में हवा कम दी, तकाजों का टिफिन पक...