Wednesday, September 24, 2025

कशिश !

उनपे जो ऐतबार था, अब यह समझ वो मर गया,

यूं समझ कि जो पैग का खुमार था, देह से उतर गया,

परवाह रही न जिंदगी को अब किसी निर्लज्ज की,

संजोए रखा बना के मोती, नयनों से खुद झर गया।

No comments:

Post a Comment

मौन-सून!

ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको, मानों कुछ यूं इस कदर भा गई, सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई,  गरजी, बरसी और बदली छा गई। मैं तो कर रहा था कबसे तुम...