उनपे जो ऐतबार था, अब यह समझ वो मर गया,
यूं समझ कि जो पैग का खुमार था, देह से उतर गया,
परवाह रही न जिंदगी को अब किसी निर्लज्ज की,
संजोए रखा बना के मोती, नयनों से खुद झर गया।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको, मानों कुछ यूं इस कदर भा गई, सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई, गरजी, बरसी और बदली छा गई। मैं तो कर रहा था कबसे तुम...
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