उनपे जो ऐतबार था, अब यह समझ वो मर गया,
यूं समझ कि जो पैग का खुमार था, देह से उतर गया,
परवाह रही न जिंदगी को अब किसी निर्लज्ज की,
संजोए रखा बना के मोती, नयनों से खुद झर गया।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
जीवन रहन गमों से अभिभारित, कुदरत ने विघ्न भरी आवागम दी, मन तुषार, आंखों में नमी ज्यादा, किंतु बोझिल सांसों में हवा कम दी, तकाजों का टिफिन पक...
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